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समात्ति-शास्त्र ।

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हैं वह देश क्या कभी सम्पत्तिमान होने की आशा कर सकता है ? अँगरेज़ की जाति व्यापार ही से बढ़ी है। उद्योग और कला-कौशल ही की बदौलत वह इस समय संसार में सबसे अधिक सम्पन्धमान हो रही है। हिन्दुस्तान का राज्यसूत्र इसी जाति के हाथ में है। अतएव यही जाति यदि हम लोगों को शिल्प, वाणिज्य और फला-कौशल आदि से सम्बन्ध रखने वाली अर्थकरी चिया न सिखलाई त बड़े आश्चर्य की बात है। खुशी की बात है कुछ दिन से हमारे प्रभु अँगरेज़-अधिकारियों का ध्यान इस तरफ गया हैं। इससे आशा होती है कि किसी दिन यह अभाव किसी अंश में शायद दूर है। जायगा फ्योंकि हमारी गवर्नमेंट हमारी साम्यक्षिक अवस्था सुधारने में अव अधिक दत्तचित्त है। | जिधर देखते हैं उधर निराशा ही के चिह्न देख्न पड़ते हैं, आशा के बहुत कम 1 अशा का चिह्न सिर्फ इतना ही है कि हमें एक ऐसी जाति से काम पड़ा है जो व्यापार-व्यवसाय में अपना सानी नहीं रखती; जिसने सारी दुनिया से व्यापार करने का द्वार ब्रेल दिया है, जिसने देश भर में रेल का जाल बिछा दिया है, जिस की पूँजी का कहीं अम्त नहीं है, जिसके साहस, व्यापार-चतुग्य, अध्यवसाय और उत्साह की जितनी प्रशंसा की जाय कम है । ऐसी अँगरेज़-जाति के संसर्ग से यदि हम उसके कुछ सद्गुण सन्न हैं और देश की आर्थिक दशा सुधारने की तरफ़ थोड़ा बहुत ध्यान दें, ते बिगड़ी बात बहुत कुछ बन सकती है। | हिन्दुस्तान की आर्थिक अवस्था सुधारने के लिए जिन बातों की ज़रूरत हैं उनमें से कुछ का उल्लेख्न हम नीचे करते हैं:--

(१) नये नथै उपायों से ज़मीन की उत्पादक शक्ति को बढ़ाना ! (३) आचादी न होने के कारण अच्छी जमीन जो परली पड़ी है उसे आबाद करना । (३) वैज्ञानिक रीतियों से कला-कौशल और दस्तकारी की उन्नति करना। (४) कच्चा चाना देशान्तर को न भेज़ कर यह सब तरह की माल पैंयार करना । (५) नई नई कले' जारी करके उपयोगी कारखाने बैलभा ।