पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/२०६

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उत्तरार्छ । पहला भाग । व्यावसायिक बातें । पहला परिच्छेद। व्यवसायी व्यक्ति । बसाय शब्द वि + अच'उपसर्ग-पूर्वक'सौ' धातु से निकला है। उसके कई अर्थों में से एक अर्थ उद्योग करना भी है।

  • व्यापर' शब्द का भी प्रायः यहीं अर्थ होता है। पर हिन्दी में द यह शब्द 'बाणिज्य' अर्थ में ही अधिक प्रयुक्त होता है। व्या

पारी अादमी व्यवसायी हो सकता है और व्यवसायी महिमा व्यापारी हो सकता है । परन्तु दोनों वाले एक दूसरे से जुदा हैं । डाकृरी, यलिनियरी, यडिटरी सभी व्यवसाय हैं, परन्तु व्यापार नहीं । हाँ मूल धात्वर्थ के विचार से व्यापार भी ज्यघसाय ही है। कृरी करके यदि कोई दुचाइयां बनावे, या कहीं से मोल मँचे और उन्हें बेचे, या और और जगह को चालान करे, तो वह व्यवसायी होकर व्यापारी भी है। सकता है। इसी तरह यदि कैाई कपड़े का व्यापार करके कपड़ा बनाने का एक कारखाना स्रोल है । वह व्यापारी हे कर अचसायी भी हो सकता है। केई केाई लाग 'व्यचसाय' शब्द का व्यापार के अर्थ में भी प्रयोग करते हैं। पर व्यवसाय का अर्थ रोज़गार या कारोबार ही होना चाहिए, जिसमें व्यवसाय और व्यापार का भेद सुनने के साथ ही ध्यान में अज्ञाय । कभी एक आदमी अकेले ही व्यचसाय करता है; कभी दो चार आदमी मिल फर' करते हैं, कभी दस-बीस, दोसौं, या इससे भी अधिक मिल कर करते हैं।