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व्यवसायी अकि।

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है। अब यदि उसे देश आदमी ऐसे मिलजायँ जिनमें से एक कलों के सम्बन्ध की सब बातें जानता हो, और दूसरा बहीखाते के काम में खूब प्रवीण ही, ते उसका काम बन जाय और तीनों आदमियों के साझे में दावार का व्यवसाय होने लगे।

बहुत दिन तक कोई काम करते रहने से अदम उसमें दक्ष है। ज्ञाता है। उसके विपय को सब बातें उसे मालूम हो जाती हैं। वह उसके सब भेदों और सन रहस्यों से जानकर हो जाता है। बड़े बड़े व्यवसाय अकेले एक आदमी नहीं कर सकता। उसे अपनी मदद के लिए नौकर रखने पड़ते हैं । ये नौकर धीरे धीरे जब उस व्यवसाय में खूब प्रवीण हो जाते हैं तब अधिक तनखाहू पाने पर भी उन्हें सन्तोप नहीं होती। इससे नौकरी छोड़ कर ने खुद ही उस व्यवसाय को करना चाहते हैं। यदि वे ऐसा करे तो उस व्यवसाय में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ जायचढ़ा ऊपरी अधिक होने लगे । इस देश में पहले व्यवसायौ फी जरूर ही छानि पहुँचे । इसी हानि के बचाने के लिए वहुधा लोग अपने पुराने नौकरों को अपने कारोषार में साझी कर लेते हैं। ऐसा करना बुरा नहीं। इससे देश का लाभ होता है। साझै के रोज़गार में साझीदारों के बीच अनबन का होना अच्छा नहीं ! इससे हमेशा हानि होती है। क्योंकि व्यघसीय में भी एकता फी ज़रूरत है । एकता बहुत बड़ा चल है एकता की बदौलत बड़े बड़े काम सहज में हो जाते हैं। साझीदारों में अनैक्य और मतभेद न होना चाहिए। कभी कभी ऐसा होता है कि व्यवसाय शुरू करते समय तो साझीदार हिल मिल कर काम करते हैं और परस्पर एक दूसरे का विश्वास भी करते हैं: परन्तु कुछ दिन बाद उनकी चालाको सुझती है; उनमें अविश्वास आघुसता है । इससे काम बिगड़ जाता है और बहुत दिन तक नहीं चलता | काई काम जारी करने के पहले मनुष्य को चाहिए कि साझीदारों के शील-स्वभाव का हाल अच्छी तरह जान लै मैरिजौ लौग सच्चरित्र, समझदार, विश्वासपात्र और सरल-स्वभाव हों उन्हीं के साझीदार अनावे । काम शुरू होने पर यदि किसी के स्वभाचया काम में कोई त्रुटि देख पड़े ते प्रीतिपूर्वक उसे उसके समझा है और जहां तक हो सके विरोध की जड़ न जमने है । परस्पर एक दूसरे