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सम्पत्ति शास्त्र।

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का विश्वास करने और उनकी त्रुटियों पर विशेष ध्यान न देनेही से व्यवसाय में सफलता होती है। अन्यथा थोड़ेही समय में से तीन तेरह हो जाते हैं। | साझे में कारोबार करनेवालों की १८७२ ईसवी के इंडियन कानूठे के पैक, नं. ९ ( Initian Contract, Act, Ni) 9 of 1872) की गन्नास खास बात को ज़रूर जान लेना चाहिए । और साझीदारों को अपने अपने लाने के विपय में दस्ताघेज़ लिख कर सब बातों का पहलेही से निश्चय करना चाहिए, जिसमें पीछे से झगड़ा न हो ।

जिन बड़े बड़े व्यवसाय के लिए बहुत पूँजी दरकार होती है चै साचैदारो से भी नहीं चल सकते। उनके लिए कम्पनी खड़ी करनी पड़ी है। बहुत से मादमियों के मिल कर कम्पनी के रूप में कारोबार करने का नाम सम्भूय-समुत्थान है । यदि कहाँ रेल निकालना हो, या ट्राम-गाड़ी चलाना हो, या कोयले की खान का काम करना हो, या धंक खौलना हो, या और कोई बहुत बड़ा कारोबार करने का इरादा हो ती विनर कम्पनी खड़ी किये दो चार साझीदारी से काम नहीं चल सकता है क्योंकि ऐसे काम के लिए लाख रुपये की पूंजी दरकार होती है। जो लोग किसी व्यवसाय के लिए कम्पनी खड़ी करना चाहते हैं में पहले इस बात का अन्दाज़ लगाते हैं कि इस काम में कितनी पूँजी लगी । फिर उस पूँजी का पंजीदारों की एक निद्दिष्ट संख्या में विभक्त करते हैं और यह बतलाते हैं कि इस काम में वार्षिक इतने लाभ की संभावना है । कपनी कीजिए कि कुछ आदमियों ने मिलकर एक बैंक खोलने का विचार किया और निश्चय किया कि दस लाद्र कृपये की पू जी इसके लिए दरकार होगी। इस पूँजी को उने दस हज़ार अदिमियों में बाँट कर एक एक आदमी का हिस्सा सी सी रुपये निश्चित किया और अनुमान किया कि प्रति सौ रुपये पर एक धर्म १० रुपये लाभ होगा। यही सब बातें एक अनुष्ठान-पत्र किंवा कार्यचिचरा में प्रकाशित करके उसे दूर दृर तक जाँट दिया । इस विवरण मैं यह भी उन्होंने लिख दिया कि जो कोई इस कम्पनी में हिस्सा लेगा उसे अपने हिंसने का अमुक अंश पहलेही देना होगा, और शैप अमुक अमुक मुद्दत के बाद, या जब ज़रूरत होगी तब । जहाँ मतलव भर के लिए हिस्से बिफे और काफ़ी रुपया गया वहां बैंक का काम शुरू कर दिया गया । इस