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व्यवसायी व्यक्ति।

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तरह कम्पनी खड़ी करके काम करने से जिनके पास थोड़ी भी पूँजी होती है वे भी अपनी पूँजी लगा सकते हैं बैर उससे लाभ उठा सकते हैं। जिस देश में कम्पनी खड़ी करके रौज़गर करने की ओर छर्गों का अधिक ध्यान है वहां पूँजी बेकार नहीं पड़ी रहतीं । विलायत में नहीं होता है । इसी से वहीं का चयापार-व्यवसाय इतनी उन्नति पर हैं। लाखों, करोड़ों को पूँजी से नित नई कम्पनियों बुलती जाती हैं और उनके द्वारा देश की सम्पत्ति दिनों दिन बढ़ती जाती है।

कई हिस्सेदार, पीछे से, यदि अपना हिस्सा बैच देना चाहे तो वह बैच भी सकता है। यदि कम्पनी का काम अच्छी तरह चल रहा है और उसे फ़ायदा रहता है तो जितने का हिस्सा होगा उससे अधिक के बिकेगा । कम्पनी की अवस्था पैर लाभ के अनुसार १०० रुपये का एक हिस्सा २०० रुपये या इससे भी गैर अधिक के पिंक सकता है। पर कम्पनी का काम अच्छा न होने से हिस्से की भाच गिर जाता है ! यहाँ तक कि कभी कभी गांठ से भी कुछ खोना पड़ता है। सा के व्यवसाय में साझीदारों को संख्या निद्दिष्ट नहीं रहती । परन्तु मिलकर काम करनेवालों की संख्या यदि सात से कम है । कम्पनी नहीं खड़ी हो सकती। सम्भूयसमुत्थान की रीति से कम्पनी खड़ी करके काम करनेवालों की संख्या कम से कम सात हानीही चाहिए । गवर्नमेंट ने क़ानूनही पेसा बना दिया है। जिसे कानून में कम्पनी खड़ी करके वाणिज्य-व्यवसाय करने के नियम है उसका नाम है-१८८२ ईसवी का इंडियन कम्पनीज़ पेक्ट, नम्बर ६ ( Indian Cons/anies Act, No }T of 1882) उसके अनुसार कम्पनी की रजिस्टरी होती है और उसके कार्यय-कर्ताओं के क़ानून में लिखी गई सब बातों की पाबन्दी करनी पड़ती है। कम्पनी खड़ी करके सम्भूय-समुत्थान द्वारा सब तरह के व्यापार और व्यवसाय हो सकते हैं । यह चिपय बहुत बड़े महब का है । अतएव इसका विचार अग्लै परिच्छेद में, कुछ विशेसत्ता के साथ, अलग किया जायगा ।