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सम्पत्ति-शास्त्र।

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अब तो एक नया भी पैशावर से कलकचे वैखटके जा सकता है । जमीन अब भी एक अनमोल चीज़ है, अव भी हमारी जननी है, अब भी हमारी जीवनधार है। परन्तु अब वह उतनी लाभदायक नहीं रही जितनी पहले थी । लगान चढ़ जाने, अवादी अधिक हो जाने, अनाज की पृतनी ज़ियादह होने से अब ज़मीन की पैदावार बहुत महँगी है। गई है। इसलिए मा मौन हो के भरोसे रहना बुद्धिमानी का काम नहीं । रुपये के गाड़ रखने या गहने बनाने की हानियां अब सब लोगों के ध्यान में गई हैं। इससे अब हमके उन व्यवसायों में रुपया लगाने का साहस करना चाहिए जो अपने, और अपने देश, दोनों के लिए उपकारी हो।

दूसरा फार इस शौचनीय अवस्था की यह हैं कि हिन्दुस्तान में रुपये के उधार-व्यवहार का उद्यम किसी एक आदमी, एक समुदाय, या एक जाति का उद्यम नहीं है । किन्तु ज़मींदार, मुनीम, दुकानदार, व्यापारी, लेखक, अध्यापक और वकील प्रायः सभी लोग, जिनके पास रुपया है, इस पैशे के फरते हैं । बहुत फरके ज़ेवर गिरवी रखकर रुपया उधार दिया जाता है। बड़े बड़े प्रतिष्ठित अादमी भी जैव रखकर रुपया उधार देने का पेशा करते हैं। जो लोग उधार देने को पैशा करते हैं चे १०० रुपये पर साल में ३० रुपये तक सूद लेते हैं । जेवर गिरवी रखकर रुपया उधार देने में रुपये के झवने का डर नहीं रहता । फ्योंकि उधार लेनेवाले का ज़बर, ज़मानत के तौर पर, महाजन की सन्दुक़ में वन्द रहता है। फिर भला ऐसे लाभदायक पेशे पर जो लोग टूटे तो क्या आश्चर्यय? परन्तु उद्योग-धन्धे, शिल्प और व्यापार की वढ़ती के ऐसे व्यवसाय बहुत बाधक हैं। क्योंकि जे आदमी रुपये के बदले माल रखकर घर बैठे ३० रुपयें सैकड़ा सील में पैदा कर सकता है वह किसी ऐसे व्यवसाय में, जिसमें सिर्फ १० रुपये सैकड़ा मुनाफा होना सम्भव है और जिसके 'फेल' हो जाने का भी डर है, जरूरही रुपया लगाने में आग पीछा करेगा 1 रुपया कमाने के लिहाज़ से पैसी बातों को बुरा बतलाना मूर्खता है । परन्तु सोचने से यह साफ़ मालूम हो जाता है कि यथार्थ में जैवर गिरवी रखने के पेशे में उतना लाभ नहीं है जितना कि ऊपर से देखने से जान पड़ता है। पर्योंकि यह पेशा करनेवालों के यहां गिरवी रक्षा हुआ ज्ञेचर हमेशा उनके पास नहीं रहता । कुछ दिन बाद घर छुड़ा लिया