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व्यवसायी कम्पनियां अथवा सम्भूय-समुत्थान।

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जाता है । अतएव सूद वन्द हो जाता है। यद्यपि जेवर लाने और छुड़ा ले जाने का सिलसिला जारी रहता है, तथापि रुपया उधार लेनेवाली की राह हमेशाही देखनी पड़ती है। यदि हिसाब लगाया जाय तो ३० रुपये सैकड़े च्याज लेने पर भी वास्तविक ध्या, ज्ञों सारी जी पर मिलता है,

यदही १० या १२ रुपये सैकड़े के हिसाब से पड़ता हो । यही पूंजी यदि किसी बड़े उद्योग-धन्धे में लगाई जाय तो लगानेवाले का रुपया एक दिन भी बेकार न रहे । साथही उसे अपनी पूँजी लगाने के सम्वन्ध की लिखा पढ़ी या प्रबन्ध आदि के नखेड़े में भी पड़ने की ज़रूरत न हो। सम्भूयसमुत्थान के नियमानुसार ध्यवसाय करनेवाली कम्पनियों में रुपया लगाने से हमेशा रुपया बढ़ता रहता है और रूपया लगानेवाला घर बैठे उससे लाभ उड़ाया करता है। दूसरी बात रुपया उधार देने में ध्यान देने योग्य यह है कि इस व्यवसाय के करनेवाली की मूल पूँजी को वास्तविक मूल्य ( Intrinsic Value } कभी नहीं बढ़ता । अर्थात् मूल पूँजो का मूल्य बर्षारम्भ में जौ सौ रुपये है तो चर्पान्त में भी उतनाही रहता है, चढ़ता नहीं । परन्तु बड़े बड़े उद्योग-धन्ध में रुपया लगाने से हिस्सों के मूल्य का बढ़ जाना बहुत संभव है। इस घशा में रुपया लगानेवाले का कोरा मुनाफ़ाही न मिलेगा, किन्तु उसकी मूल पूजी की क़ीमत भी बढ़ जायगी । मान लीजिए कि आपने किसी कम्पनी में १०० रुपये का एक हिस्सों ख़रीदा । यदि कम्पनी को सफलता हुई और घर्ष के अन्त में ८ रुपये सैकड़े की दर से मुनाफ़ा दिया गया तो संभव है कि आपके १०० रुपये के हिस्से का मूल्य १२० रुपये हो जाय । तब उसकी वास्तविक दर ९ रुपयै सैकड़े नहीं, किन्तु २७ रुपये सैकड़े हो जायगी । ऐसे कामों में कभी कभी बेहद लाभ होता है। दृष्टान्त के तौर पर कोयले का काम करनेवाली बंगाल की कटरसगढ़ झरिया कम्पनी" की लीजिए | कई वर्ष हुए इसके हिस्से दस दस रुपये की जिंकते थे। अचानक इसके कोयले की माँग वही । इससे इसके हिस्सों का मूल्य भी बढ़ने लगा । यहां तक कि १० रुपये का एक शैयर (हिस्सा) ४२ रुपये में लिया जाने लगा। यहीं समाप्ति न समझिए । कोयले की मग इतनी बढ़ी कि यह कम्पनी अकेले सब केथिला न स्त्रोद सकी । इससे इसने अपनी कुछ ज़मीन एक नई कम्पनी “शिवपुर कौल माइनिंग कम्पनी को बेचदी। इसने झरिया कंपनी के हर एक हिस्सेदार