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सम्पत्ति-शास्त्र।

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की, जिसके ५ शेयर धे, '४ शेयर पाँच पाँच रुपये के बिना मूल्य दिये । इस कम्पनी की भी बड़ी तरकी हुई और उसका ५ रुपये का एक शेयर १४ रुपये के बिकने लगा । अव ज़र। उस आदमी की अवस्था पर विचार कीजिए जिसने १०० रुपये के १० वीथर पुरानी कम्पनी में बरीद लिये थे। अब उसके १०० के ४२० रुपये गये और ४० रूपये के हिसात्र से भुनाफ़ा अलग ! इसके सिवा उसके ८ शेयर इस नई कम्पनी में १९२मपये के मीर है। गये। अर्थात् १०० रुपये की जगह उसकी मूल पूंजी में ५३३पये हो गये और मुनाफा अलग | भला ऐसे लाभ के मुक़ाबले में लेन देन से होनेवाला लाभ घ्या चीज़ है ? परन्तु ऐसे अवसर सदैव हाथ नहीं आते । इसमें मया लगानेघाले की बहुत सोच समझ कर लगाना चाहिए !

तोसरा कारण उद्योग-धन्धे में रुपया लगाने से डरने की यह है कि हम लोगों ने बहुत भ्रम् अन्ना हैं। कितनी ही फगनियां बड़े उत्साह और बड़े आडम्बर से गन्नड़ी की गई, परन्तु थोड़े ही दिनों में उनका दिवाला निकल गया। फल यह हुआ कि किसी किसी रूपया लेगाने वाले की घर-गृहस्थी तक यिक गई। इसी सै, जिस तरह इञ्च काजल छाछ भी फेंक फूक कर पीता है, कथा लगाने में लग हिचकिचाते हैं। ऐसी बहुत सी मिसाले मौजूद हैं। १८९० ईसच की बंगाल की सैराने की खान खेादने वाली कम्पनी की बात याद कीजिए । अफवाह उड़ी कि धंगाल की जमीन में सेना भरा पड़ा है। एक कम्पनी वाली गई । इचा में गांठ लगाई गई। यहां तक कि चदां के कचे सोने के टुकड़ नक कलकत्ते में दिखाये गये 1 साने के दाम में बड़ी “माका -शक्ति है । शेयर बिकने लगे 1 दिन दूनै रात चौगुने हानै लागे । अमी, राजा और नबाव ने खूधही शेयर ग्रीदे। परन्तु पीछे से भण्डा फूटा । टॉय टाँय फिस ! मालूम हुया कि बंगाल की खानों में सोने का नामानिशान भी नहीं 1 एक आदमी इस चालाकी से माल मारकर मालामाल दैा गया । परन्तु शैयर बरोदने वालों के घर हाहाकार मच गयो । यही दर, १८८२-८३ ईसवी में, मैसूर-राज्य की चाइनाद की पहाड़ियों की खान की हुई । यद्यपि इसमें अँगरेजी ही का रुपया बरबाद हुआ, तथापि उसका असर इस देश वालों पर भी बहुत कुछ पड़ा । एक बात जरूर है कि इन खान की घात बिलकुल ही गप न थी। सानै की ब्राने घहाँ अवश्य थीं और इस देश चले किसी समय उनसे सेना निकालते भी थे। इसी से