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भारतवर्ष में सम्पत्ति शास्त्र के प्रभाव का कारण


भी नहीं हुई। यद्यपि बाहरी धादशाहों ने इस पर अनेक बार चढ़ाइयाँ कों और प्रसंख्य धन लूट ले गये; पर उससे देश की सम्पत्ति को विशेष धक्का महीं पहुंचा । क्योंकि सोना, चांदी, रज आदि जावे लूट ले गये, एक मात्र उन्हीं की गिनती सम्पत्ति मै नहीं। व्यवहार को सभी चीजें सम्पत्ति में शामिल हैं। उनकी आमदनी पूर्ववत् बनी रही। रसादि की प्राप्ति पृथ्वी के पेट से होती ही रही । पृथ्वी यथेष्ट अन्नदान भी बराबर करती रही। (३) रहा तीसरा कारण व्यापारविषयक, सो मुसल्मानी राज्य में इस देश के व्यापार का उाकर्प हो रहा। कभी अपकर्ष नहीं हुआ। कला-कौशल और व्यापार में यह देश हमेशा ही बढ़ा चढ़ा रहा। देश देशान्तरों के बाजारों में यहां की चीजें पटी रही । किसी देश ने इसको साथ व्यापार में चढ़ा ऊपरी । करने का स्वप्न में भी खयाल नहीं किया। और किया भी हो तो कामयाबी को पाशा नहीं देखी । इसीसे कभी किसी ने व्यापार में इस देश से प्रति- रूपा नहीं की। अतपत्र सम्पत्ति-हास के जितने प्रधान कारण हैं, उनमें से एक का भी सामना हिन्दुस्तान को नहीं करना पड़ा। फिर भला सम्पत्ति- शाला की उम्दावना करने, उसके सिद्धान्त हूंढ़ निकालने और सम्पत्ति के प्रवाह को रोकने का प्रयत्न कोई क्यों करता? इन बातों का प्रेरक कोई कार ही नहीं उपस्थित हुआ। और यह अखण्डनीय सिद्धान्त है कि बिना कारण के कोई कार्य नहीं होता।

यह मुसलमानी राज्य के समय की बात हुई। उसके पतले, हिन्दू- साम्राज्य के समय में भी, सम्पत्तिशास्त्र की उत्पत्ति का उत्तेजक, इन कारणों में से एक भी कारण नहीं पैदा हुआ। विपरीत इसके, जैसा ऊपर कहा जा चुका है, विद्वान् पण्डितों के हृदय में सम्पत्ति की तुच्छता का भाव जाग- एक था । वह इस शाल की रचना के मार्ग का और भी अधिक अव- रोधक हुआ।

इस देश में अँगरेज़ों के पधारते ही उनकी सत्ता का सूत्रपात होते हो-यहां की स्थिति में फेर फार शुरू हो गया। जो बातें सस्पतिशास्त्र की उत्पत्ति का कारण मानो गई हैं वे उपस्थित होने लगीं। यहाँ की सम्पत्ति इगलैंड गमन करने लगी । हुकूमत के बल पर इस देश के व्यापार की जड़ में कुठाराघात होने लगा। अमन चैन के कारण आबादी बढ़ने से ज़मीन पहले से अधिक जोती जाने लगी । जमीन की पैदावार पर ही कोई ९० की