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सम्पत्ति शास्त्र।

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है। जी० आई०पी० रेलवे और सरकारीतरघरोंकेतरिवालों का इड़ताल, बम्बई के चिट्ठीरसी का हड़ताल, जमालपुर के रेल-कारखाने के कारीगरों की हड़ताल, ६० आई० रेलवे के ड्राइवरों और गाड़' की हड़ताल और कलकत्ते के मेहतरों का हड़ताल अभी बहुत दिन की बात नहीं हैं। किसी व्यवसाय-धिशेप में लगे हुए लोगों की, आपस में सलाह करके, किसी निश्चित समय पर, मालिक की इच्छा के विरुद्ध, काम छोड़ कर बैठ रहना हड़ताल कहलाता है । हड़ताल करना न्याय भी है अन्याय्य भी । मज़दूरों और कारखानेदारों में दुकानदार और श्राहक का नाता है । दुकानदार अपनी चीज़ की जिस भाव चाहे बेच सकता है । ग्राहक यह नहीं कह सकता कि हम अमुक भाव से ही लेंगे । यदि ग्राहक के कई चीज़ महँगी मालूम है। तै। उसे अणूनियार है न ले । जहां कहीं उसे बह चीज़ सस्तो, या मुहँ माँगे दामों पर मिले, घहां ले। ऐसा करने से न दुकानदारही अपराधी या अन्यायी कहा जा सकता है और न ग्राहक ही। यही हाल मज़दूरों और कारवानेवालों की है । यदि कोई कार'वानेधाला मजदूरों को उनकी मुद्दे मांगी मजदूरी न दे, या उनसे उतनेही घंटे काम करने पर राज़ी न हों जितने घंटे में काम करना चाहें, तैर मज़दूर

बुशी से उस कारग्याने केा छोड़ सकते हैं । इस दशा में कारग्वानेदार की शिकायत नहीं चल सकती कि हमारा काम घन्ट्र हो जाने से हमारी हानि होगी : अतएव मज़दूर अपराधी हैं। हड़ताल करने के पहले मजदुर था और श्रमजीवी साफ कह देते हैं कि हम इतनी तनच्चाह र', या इतने घंटे, काम नहीं कर सकते हैं कारखानेदार उनले काम लेना चाहे ते? उनकी शिकायत • दूर कर दें ! अन्यथा इनकार करने का फल भोगने के लिए तैयार हैं। परन्तु कभी कभी ऐसे चॅमौके हड़ताल होते हैं कि सर्व-साधारण फै। अहुत तकलीफ़ उठानी पड़ती है, यहाँ तक कि उनकी जान तक नृतरे में पड़ जाती है और उनके माल असबाब के भी लुट जाने का डर रहता है । नवम्बर ०७ में ई० आई० रेलवे के ड्राइवरों ने जौ १० दिन तक हड़ताल की थी उसे हम लोगों की इस बात का बहुत कुछ सजरिवा हो गया है कि हड़ताल से सर्वसाधारण के कितना कष्ट उठाना पड़ता है। अमेरिका फी रेलों के संजिन ड्राइवर और गाई लोगों ने कई दफे रास्ते में चलते चलते ताल कर दी। वे पहलेही से निश्चय कर लेते हैं कि अमुक दिन, अमुक समय पर, हुड़ताल करेंगे। उस समय यदि दो स्टेशनों के बीच, घोर जंगल में,