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हड़ताल और द्वाराबरोध ।

व्यवहार के जितने पदार्थ हैं सब सम्पत्ति हैं । अतएव इस तरह व्यवहार की सामग्री को उत्पत्ति में कमी होना मानों देश की सम्पत्ति कम होना है। इससे जिस सम्पत्ति-शास्त्र में देश की सम्पत्ति-वृद्धि की इतनी महिमा गाई जाती है वह शास्त्र सम्पत्ति-विनाशक हड़ताल का कदाधि अनुमोदन नहीं कर सकता। उदाहरण के तौर पर, साल में सम्पत्ति का अंश क्षय होने पर यदि कहीं अमजीवी लोगों की मेहनत के घंटे भी कम कर दिये जायें ता और भी अधिक धनक्षय होने लगे और कुछ ही समय में देश को बहुत बड़ा धका पहुँचे । कल्पना कीजिए कि यहां के कारखाने साल में ४ हपते बन्द रहते हैं। बाकी ४८ हफ्ते १० घंटे रोज के हिसाब से काम होता है । अब यदि उनमें नौ ही घंटे रोज़ काम हो तो एक दशांश सम्पत्ति और भी कम हो जायगी या नहीं ? इतनी सम्पत्ति कम होने पर भी यदि कारखानेदारों को पहले से अधिक मजदूरी देनी पड़ेगी तो व्यवहार को चीजें महंगी हुए विना कदापि न रहेंगी । इसका असर सर्वसाधारण पर ज़रूर ही पड़ेगा। सब को महँगी चीजें मोल लेनी पड़ेगी। मजदूरों का भी इससे परित्राण न होगा । वहुत संभव है कि जितनी मज़दूरी उन्हें अधिक मिले उसके परिमाण से महँगी का परिमाण अधिक हो जाय । इस दशा में लाम तो दूर रहा, उलटा उन्हें हानि उठानी पड़ेगी। ___ व्यावहारिक चीजें महंगी होने से बड़ी बड़ी हानियां हो सकती हैं। यदि उनकी रपतनी विदेश को होती हो तो वे यहाँ प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थ हो जाती हैं। क्योंकि मजदूरी अधिक पड़ने के कारण वे चीजें और देशों की चीज़ों से सस्ती नहीं बिक सकतों। परिणाम यह होता है कि उनकी रफ़्तनी बन्द हो जाती है। कारखाने दूट जाते हैं या उनमें काम करने बालों की संख्या कम करनी पड़ती है। इससे बहुत से मजदूर घेकार हो जाते हैं और जो रह जाते हैं उन्हें थोड़ी ही उजरत पर सन्तोष करना पड़ता है। हड़ताल करने से यदि मजदूरों की उजरत की शरह बढ़ भी जाय तो भी कभी कभा उन्हें कुछ भी लाभ नहीं होता। कल्पना कीजिए कि एक कारीगर को आठ आने रोज़ मिलता है। उसने भी पारों के साथ हड़ताल