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सम्पत्ति-शास्त्र ।


किया पार १६ रोज़ घेकार बैठा रहा । अर्थात् ८ रुपये की उसने हानि उठाई । अब यदि १६ दिन बाद उसकी उजरत ९ आने रोज़ हो गई तो उसकी ८ रुपये की हानि कोई ४ महीने काम करने बाद पूरी होगी । यदि वाटत हड़ताल होने से इस बीच में व्यवहार की चीजें महँगी हो जायें, या किसी कारण से उसे काम छोड़ना पड़े, तो उसकी पूर्व-हानि को कभी पूर्ति न हो सकेगी। अतएव हड़ताल को सफलता से भी उसे कोई लाभ न होगा। यह देखा गया है कि हड़ताल बहुधा कम सफल होते हैं, निष्फल ही अधिक होते हैं। पश्चिमी देशों में, जहां जीवन संग्राम का झंझट बहुत बढ़ गया है और जहाँ अनन्त कल कारयाने जारी है, हड़तालों की सफलता के लिए श्रमजीनियों ने बड़े बड़े प्रबन्ध किये हैं। विसपर भी उन्हें यथेए सफलता बहुत कम होती है । दरिद्र, अशिक्षित और पराधीन भारत में उम उपायों, उन साधनों, उन प्रबन्धों का अभी कहीं सूत्रपात भी नहीं टुंआ । इस दशा में यदि यहाँ के हड़ताल निष्फल जाये तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। चौथा परिच्छेद। व्यवसाय-समिति । पुँजी वालों पर श्रमजीवियों का घनिष्ट सम्बन्ध है । यदि ये आपस में एक दूसरे से सम्बन्ध न रखें तो दी में से एक का भी काम न चले । परन्तु श्रमजीवी लोगों की अपेक्षा पूंजी वाले कारखानेदार या व्यवसायी धनी होने के कारण बहुत अधिक प्रबल और प्रभुताशाली होते हैं। इसी से श्रमजीवी मजदूरों को उनका मुंह ताकना पड़ता है-जितने घंटे वे काम " करना पड़ता है भार जितमा चेतन दें मंज़र करना पड़ता है। इस दुर्वलता को दूर करने के लिए पश्चिमी देशों में व्यवसाय-समितियों की स्थापना की गई है। किसी व्यवसाय-विशेष से सम्बन्ध रखने वाले मजदूरों और कारीगरों आदि के संगठित समाज का नाम व्यवसाय-समिति है। व्यवसाय-समिति से हमारा मतलब " Trules' Unions" से है। इस तरह के समाज इस ..