पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/२३३

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२१४ सम्पत्ति-शास्त्र। पाचवा परिच्छेद । व्यवसायियों और श्रमजीवियों के हितविरोध-नाशक उपाय । पण्डित माधवराव सप्रे, वी० ए०, ने अपने एक अप्रकाशित लेख्न में इस विषय को थाड़े में बहुत अच्छी तरह लिखा है । पण्डित जी की अनुमति से उसीका भावार्थ हम यहाँ पर देते हैं। नीति की दृष्टि से देखा जाय तो जिस तरह कारनाने के मालिकों का एका न्याय्य है उसी तरह मजदूरों का एकाभी न्याय्य है । परन्तु सम्पत्तिशास्त्र की दृष्टि से मजदूरों और कारखानेदारों का पारस्परिक हितविरोध अच्छा नहीं। ऐसे हितविरोध से सम्पत्ति के उत्पादन में बाधा आती है और देश की बड़ी हानि होती है। इस हानि से बचने का एक मात्र उपाय यही है कि यह हितविरोध दुर कर दिया जाय । क्योंकि जन तक विरोध का नाश न होगा तब नक मजदुर अधिक उजरत पाने के लिए हड़ताल, मेरर कार- पवानेदार उजरत घटाने के लिए द्वारावरोथ, करते ही रहेंगे। मजदूरों की मेहनत ही से बड़े बड़े कारखाने चलते हैं। पर उन्हें मज़- दूरी के सिवा और कुछ नहीं मिलता। कारश्वानों की बदौलत सम्पति की जो वृद्धि दाती है और उससे कारमाने वालों को जो भुनाफ़ा होता है उसका कुछ भी अंश मजदूरों को नहीं मिलता। पूंजीवाले कारखानेदार सारा मुनाफा बुदही ले जाते हैं । वे सिर्फ अपने फ़ायदे की तरफ़ देखते है, मज़- दुरों के फ़ायदे की कुछ परवा नहीं करते । इससे मजदूरों का उत्साह भंग हो जाता है और विरोध का चीज अंकुरित हो उठता है । इस विरोध को दूर करने के लिए योरप और अमेरिका में बहुत से उपाय किये गये हैं। ये उपाय उस उद्देश से किये गये हैं जिसमें मालिक और मजदूरों को इस बात का विश्वास रहें कि हम दोनों का हित एक सा है। कारखाने को लाभ होने से धर्म भी लाभ होगा, पार हानि होने से हमें भी हानि होगी। यह बात तभी होगी जब मजदूरोंफी मज़दूरी के सिवा और भी कुछ मिलेगा। अर्थात् थदि मुनाफे का कुछ अंश उन्हें भी दिये जाने की तजवीज कर दी जायगी तेा मजदूरों को विश्वास हो जायगा कि कारखाने के मालिक को लाभ होने से हमें भी लाभ होगा। इससे उनका उत्साह बढ़ जायगा । पहले की अपेक्षा अपना काम चे अधिक