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सम्पत्ति-शास्त्र ।


नहीं उलटा उनका और मजदूरों का सम्बन्ध हद हो जाता है दोनों का हित-घिरोघ दूर हो जाता है ! इस उपाय से लाभ उठाने के योरप में अनेक उदाहरण हैं। उनमें से पेरिस ऐंड आरलियन्स नामक रेलवे कम्पनी का उदाहरण ध्यान में रखने लायक है । १८४४ ईसवी में उसने यह निश्चय किया कि अपनी पूंजी पर फ़ीसदी ८ मुनाफा लेकर जो कुछ बचेगा वह कम्पनी के नौकरों को बांट दिया जायगा । इस निश्चय के कारण उसके नौकरों ने इतनी ईमानदारी से काम किया कि १८४४ से १८८३ ईसयो तक, अर्थात् ३९ घर्प मैं, ३,८७,५०,६७० रुपये मुनाफ़ा उस कम्पनी के नौकरों को बांटा गया। ३९ वर्ष में कोई ४ करोड़ रुपये की अधिक आमदनी हुई। यह सिर्फ नौकरों के दिल लगाकर काम करने का फल था। इससे उस कम्पनी के मालिकों और नौकरों के हित-विरोध का एकदम नाश हो गया और कम्पनी को इतना लाभ हुआ कि इस समय यह कम्पनी बड़ी धनवान और बड़ी प्रतिपत्तिशालिनी गिनी जाती है। एक और उदाहरण लीजिए । पेरिस में मेसन लेकलेयर नाम की एक कम्पनी है । उसका काम मकान सजाने का है । इस कम्पनी को एम० लेक- लेयर नाम के एक अल्पचयस्क आदमी ने खड़ा किया था । जाति का वह मोची था। लड़कपन में यह सिर्फ सवा दो रुपये रोज़ की मजदूरी करता था । पर वह बड़ा मेहनती, बुद्धिमान और दूरन्देश था । बहुत जल्द उसने अपने नाम से कम्पनी खड़ी कर दी । १८४० ईसवी में ३०० आदमी उसके कारखाने में काम करते थे। उनकी सुस्ती और लापरवाही से उसे बहुत हानि होती थी। इससे वह उन लोगों की मेहनत को अधिक उत्पादक करने के उपाय सोचने लगा। उसने सोचा कि यदि मेरे कारखाने के मजदूरों को मामूली मजदूरी के सिवा कुछ और लाभ हो तो वे लोग अधिक दिल लगा कर और अधिक होशियारी से काम करें। उसने हिसाब लगा कर देखा तो मालूम हुआ कि यदि हर मजदूर दिल लगाकर काम करे तो एक दिन मै, काम के घण्टे न बढ़ाने पर मो, वह ६ आने का काम अधिक करेगा । और यदि हर मजदुर कारखाने के औजारों तथा अन्यान्य चीज़ों को हेशियारी से काम में लावे-उन्हें व्यर्थ खराब न करे-तो एक दिन में ढाई आने की बचत और होगी । तब उसने एक दिन सब मजदूरों को इकट्ठा किया और,