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व्यवसायियों और श्रमजीवियों के हितविरोध-माशंक उपाय ।


उनसे कहा कि यदि तुम लोग दिल लगाकर मेहनत करो, और कारखाने की चीज़ वस्तु को सावधानता से काम में लावो, तो तुम में से हर आदमी को मामूली मज़दूरी के सिवा साढ़े आठ आने रोज़ और मिलें। अतएव जिसे अधिक कमाने की इच्छा हो वह खूब उत्साहपूर्वक मन लगा कर काम करे। यह कह कर उसने उन ४४ आदमियों का हिस्सा, जिन्होंने गत वर्ष अच्छा काम किया था, उसी दम बाँट दिया। इससे मजदूरों का उत्साह बढ़ गया। उन्होंने खूब दिल लगाकर काम करना शुरू किया । फल यह हुआ कि उन्हें खूब लाभ होने लगा। कुछ दिनों बाद लेकलेयर ने अपने मजदूरों को भी कारखाने का साझी- दार बना लिया। उनसे भी थोड़ी थोड़ी पूंजी लेकर अपनी पूंजी में शामिल कर लिया। इससे और भी अधिक मुनाफ़ा होने लगा । लेकलेयर और मजदूर दोनों मालामाल हो गये । १८७२ ईसवी में लेकलेयर की मृत्यु होगई, पर उसने अपनी कम्पनी का प्रबन्ध पेसी अच्छी तरह से कर दिया था कि उसके मरने पर भी उसका कारस्थाना पूर्ववत् चल रहा है। १८७२ ईसवी में रस कम्पनी की जायदाद १२,००,००० रुपये की थी। इसके दस वर्ष बाद, १८८२ ईसवी में, वह बढ़कर १८८३.७०० रुपये की हो गई । १८४५ से १८८२ तक सब मिला कर १७ लाख ५५ हजार रुपया मुनाफ़ा मजदूरों को बाँटा गया ! इस समय यह कम्पनी और भी अधिक उन्नति पर है। ये उदाहरण कुछ पुराने हैं और फासेट को सम्पत्ति-शास्त्र-विषयक अंगरेजी पुस्तक से लिये गये हैं। इनके बाद योरप और अमेरिका में इस तरह के सैकड़ी उदाहरण पाये जाते हैं जिनमें मजदूरों को मुनाफ़े का कुछ हिस्सा देने के कारण, मालिकों और मजदूरों, दोनों, को अनन्त लाभ हुआ है। इस से सिद्ध है कि मजदूरों और कारखाने के मालिकों के हित-विरोध को दूर करने के लिए यह उपाय बहुत ही अच्छा है। ___ मजदूरों को मुनाफे का कुछ हिस्सा देना लाभदायक जरूर है, परन्तु उस से भी पूँजी पौर श्रम को पूरी पूरी एकता नहीं होती। क्योंकि जब किसी व्यवसाय में बहुत मुनाफ़ा होने लगता है तब लालची पूंजीवाले अपने मजदूरों को उस मुनाफ़े का काफी हिस्सा नहीं देते । इस से मालिक श्रीर मजदूरों में फिर हित-विरोध पैदा हो जाता है। परिणाम यह होता है कि कारोबार में फिर हानि होने लगती है। अतएव समझदार व्यवसाथियों 28