पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/२४१

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दूसरा भाग। साख, बैंकिंग और बीमा । पहला परिच्छेद । साख । SHARYATREEा एक दूसरे का विश्वास किये संसार में यों भी किसी का काम नहीं चल सकता । पर व्यापार-व्यवसाय में तो इसको श बड़ी ही जरूरत रहती है। बाज़ार में जिसका विश्वास नहीं-जिसकी साख नहीं-उसका कुछ भी नहीं। अँगरेज़ी में एक शब्द "क्रेडिट" (Crelit) है । हिन्दी शब्द सास और संस्कृत-शब्द विश्वास उसी के भावार्थ का बोधक है। साख शब्द का यदि स्पष्टीकरण किया जाय तो उसका मतलब उधार लेने की योग्यता था सामर्थ्य छ सकता है। जिस व्यवसायी की साख अच्छी है, अर्थात् उधार लिये गये रुपये को वादे पर दे देने का लोग जिसका विश्वास करते हैं,उसी को क़र्ज़ मिल सकता है उसी को विना नकद रुपया दिये माल भी मिल सकता है। जव रामदास अपना माल इस उम्मेद पर कृष्णदास को देता है कि 'बह उसे वादे पर लौटा देगा, था उसकी कीमत दे देगा, तो हम कह सकने है कि रामदास, कृष्णदास का विश्वास करता है वह उसकी साख मानता है। आजकल कभी कभी इस विश्वास के पीछे लोगों को धोखा भी खाना पड़ता है। उनका माल या रुपया मारा भी जाता है; बह वसूल नहीं होता। तथापि इस तरह के धोखे से साल के अर्थ में बाधा नहीं पाती। असभ्य और प्रशिक्षित देशों में खास खास चीज़ों के खयाल सेसाख मानी जाती है। पर सभ्य और शिक्षित देशों में उधार के लेन-देन में रुपया ही की साख मानी जाती है । कल्पना कीजिए कि किसी सभ्य देश में किसी को एक घोड़ा लेना है। परन्तु उसके पास रुपया नहीं है। इस से वह किसी