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साख।


रुपये वाले के पास जायगा । यदि रुपये वाला उसकासाख मानेगा तो घोड़ा लेने के लिए उसे काफी रुपया दे देगा । अथवा यदि घोड़े वाले ही को उस आदमी का विश्वास होगा तो वही उसे घोड़ा दे देगा और उसकी कीमत के बराबर रुपये का इसे कर्जदार बना लेगा। जिस आदमी की साख नहीं उसे पहले तो उधार मिलता नहीं, और यदि मिलता भी है तो व्याज बहुत देना पड़ता है। पयोंकि उधार देनेवालों को इस बात का सन्देह रहता है कि हमारा रुपया वापस मिलेगा या नहीं। यह सन्दह जितना ही अधिक होता है व्याज भी उतना ही अधिक देना पड़ता है। इसी से व्यापारियाँ.पार व्यवसायियों के लिए साख एक अन- माल-धन-समझना चाहिए-। उनके लिए साख एक तरह की बहुत बड़ी पूँजी है। मुयोग उपस्थित होने पर, साख को व्यवहार में लाने से, वह पूँजी से भी अधिक काम कर जाती है। इसी से व्यवसाय में साख की इतनो महिमा है। जब कोई व्यवसायी अपनी साख के बल पर माल खरीद करता है तब उस माल पर उसका पूरा स्वत्त्व-पूरा अधिकार हो जाता है। नकद रुपया देकर उसे खरीद करने से जिस तरह बह उसका व्यवहार कर सकता, या उसे घेच खर्च सकता, ठीक उसी तरह उधार लेकर भी यह उसका व्यवहार कर सकता है और उसे चेच-खर्च भी सकता है। मसल मशहूर है कि-"लाख बाय, पर साख न जाय"1 जिनकी साख है उन्हें यथेष्ट माल पार रुपया मिल सकता है। बहुत आदमियों के पास रुपया होता है, पर वे बनिज-व्यापार नहीं कर सकते । पौरत, बच्चे, घुडदे यदि मालदार भी हुए । भी वे कोई कारोबार अच्छी तरह नहीं कर सकते । यदि उन्हें ऐसे आदमी मिल जायें जिनकी सान हो, तो 'मपना रुपया उन्हें धाड़े व्याज पर दे देते हैं। इस से उनका रुपया भी नहीं डूबता पर फायदा भी होता है। उधर जो आदमी रुपया लेता है वह उससे व्यापार-व्यवसाय करके खुद भी फायदा उठाया है मार देश की सम्पत्ति को भी बढ़ाता है। कितने ही आदमी ऐसे होते हैं जो अनेक तरह के कारोबार कर सकते हैं, पर रुपया पास न होने से बेचारे हाथ पर हाथ घर बैठे रहते हैं। जिनके पास माल मरता है, जायदाद है, गहना-शुरिया है