जिसकी सान जितनी ही अधिक होती है उसे उतनाही कम ध्याज पर
उधार मिलता है । जैसे आदमियों को उधार लेना पड़ता है वैसेही राजाओं
या देशों को भी लेना पड़ता है। यद्यपि इंगलैंड इतना प्रचल राज्य है और
यद्यपि वहां अनन्त धन है तथापि उसे भी राजकीय कामों के लिए कभी
कमी रुपया उधार लेना पड़ता है । देशों का भी हाल व्यक्तियों का पेसा है।
किसी देश की साख कम है, किसी को अधिक । आज कल जापान को
चढ़ती कला है। उसका बड़ा दौर दौरा है; उसको साख बहुत बढ़ी चढ़ी
है । इसीसे रूस-जापान युद्ध के समय जापान को इंगलैंड और अमेरिका से
जो कर्ज लेना पड़ा यह बहुतही थोड़े सूद पर मिल गया । यही, नहीं, किन्तु
उसे जितना रुपया दरकार था उससे दूना, तिगुना तक देनेको लोग तैयार
हो गये । पर रूस की साख कम होने के कारण उसे फ्रांस से जापान की
अपेक्षा अधिक सूद पर रुपया मिला; सिस पर भी बड़ी मुश्किल से राम राम
करके काफ़ी रुपया इकट्ठा हो सका । टौ की सास्त्र बहुत ही कम है । उसे
किसी समय फ्री सदी बारह के हिसाब से सूद देना पड़ता था। पर अब
कुछ समय से उसकी सान बढ़ी है। इंगलैंड की साख इतनी अधिक है
कि उसे फ़ीसदी तीन से भी कम शरह पर उधार मिल सकता है। मतलब
ग्रह किजो देश उधारली हुई रकम को लौटाने और उसके सूद को यथा-समय
चुकाने की जितनी ही अधिक शक्ति रखता है उसे उत्तनाहीं कम सूद देना
पड़ता है। उधार देनेवालों को जब इस बात का विश्वास हो जाता है कि
हमारी रकम न डूबेगी और हमें सूद भी बराबर मिलता जायगा तब वे
थोड़ेही सूप पर रुपया देने को राजी हो जाते हैं। और भी कई बातों का
मसर राजकीय वर्ज़ के सूद की शरह पर पड़ता है । पर उन सबका उल्लेख
इस छोटी सी पुस्तक में नहीं हो सकता।
अच्छा अब व्यापार-व्यवसाय के सम्बन्ध में सास्त्र का विचार फोलिए ।
सान होने से उधार रुपया मिल सकता है और उधार रुपया मिलने से
अधिक माल खरीदने में सुभीता होता है । जब व्यवसायियों को यह
मालूम होजाता है कि किसी चीज़ का भाव चढ़ाने की शङ्का है तब धे
उसे पहले हो से खरीदने लग जाते हैं। उनके पास जो नकद रुपया होता
है उस से घे अपेक्षित माल खरीद लेते हैं । रसके सिवा वे अपनी साख
के बल पर भी बहुत सा माल खरीदते हैं। इस से उस चीज़ की आमदनी
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साख।