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सम्पत्ति-शास्त्र।

बढ़ जाती है। जो लोग उस चीज़ को बनाते या पैदा करते हैं वे उसे अधिक परिमाण में बनाने या पैदा करने लगते हैं। यदि सास्त्र के बल पर उधार माल या रुपया न मिले तो चीजों की आमदनी या उत्पत्ति भी अधिक न हो । अत्तपच रुपया या माल उधार मिलने के कारण, किसी चीज़ की मांग अधिक होने से जो उसका भाव चढ़ जाता है तो उसकी आमदनी और उत्पत्ति भी अधिक होजातो है। .. जो प्रादमी अपनी साख के बल पर माल खरीद करता है उसकी माल खरीद करने की शक्ति बढ़ जाती है। सब चीज़ों का क्रय-विक्रय यदि नकद रुपये से ही दो तो व्यापार-व्यवसाय का विस्तार बहुत कम होजाय । कल्पना कीजिए कि किसी जुलाहे को दो चार मन रुई लेना है। पर उसके पास रुपया नहीं है। इस से वह रुई के मालिक को एक चिट्ठी लिख देगा कि मैं इस नई की कीमत ६ महीने में अदा करूंगा। इस चिट्ठी को लेकर सवाला अपनी गई दुलाहे को देदेगा। ६ महीने होजाने पर जुलाहे ने देखा कि मई की क्कीमत चुकाने के लिए अब भी मेरे पास रुपया नहीं है। प्रतपथ बह फिर रुई के मालिक के पास जायगा और यदि उसकी सास्त्र बाज़ार में अच्छी है तो कुछ व्याज फ़बूल करके वह एक नई चिट्ठी लिन देगा और राई का मालिक उसे ले लेगा। इस तरह की चिट्टियों का नाम हुँदो है। यधपि सास के बल पर खरीद किये गये माल को कोमत कभी कभी नहीं चुकता होती, और माल के मालिकों को हानि उठानी पड़ती है, तथापि ऐसा बहुत कम होता है। विना साल के व्यापार-व्यवसाय अच्छी तरह नहीं चल सकता और माल की खरीद भी यथेष्ट नहीं हो सकती । इस से बाज़ार में साख का होना बहुत ज़रूरी है और साख्न के बल पर खरीद किये गये भाल की कीमत शुफाना भो व्यवसायियों का बहुत बड़ा कप्तव्य है । नकद रुपया देने की शर्त होने से जो माल खरीद नहीं किया जा सकता वह साख की बदौलत खरीदा जा सकता है। मतपथ साख के कारण माल की कटती अधिक होती है और कटती अधिक होने से उसकी उत्पत्ति भी अधिक हो जाती है। इसका फल यह होता है कि लाखों हजारों आदमियों की रोजी चलती है और सब लोग थोड़ा बहुत फायदा उठाते हैं। कभी कभी लोग अपनी साख का बुरा उपयोग करते हैं । इससे उन्हों पोछे पछताना पड़ता है और बड़ी बड़ी हानियां उठानी पड़ती हैं। ये हानियाँ घाहुत करके मनसूबेबाज़ी के कारण होती है।