एक उदाहरणा लीजिए । कल्पना कीजिए कि संयुक्त प्रान्तों में पाला या
लसी लगजाने के कारण व्यापारियों ने सोचा कि इस साल गेहूं कम होगा।
उन्हों ने क्या किया कि सांस की चिट्ठियां दे देकर बहुत सा गेहूं खरीद लिया।
इस खरीद के कारण गेहू महंगा होगया । व्यापारियों ने मनसूबा बाँधा था
कि चिट्ठियों, अर्थात् हुडियों, की मुद्दत्त पूरी होने के पहले हो हम गेहूं बेंच
कर बहुत सा मुनाफा उठायगे और हुंडियों की मुद्दत पर रुपया चुकादेंगे ।
या यदि ज़रूरत होगी तो इंडियों की मुद्दत बढ़या देंगे । पर ये लोग ठहरी
हिन्दुस्तानी व्यापारी। इनको यह तो खबर थी ही नहीं कि और प्रान्तों या
और देशों में गेहूं की फसल की क्या दशा है । इनके दुर्भाग्य से पंजाब में
अच्छा गेहूं हुआ। वहां से सैकड़ों किराचियां गेहूं कानपुर, लखनऊ, इला-
हाबाद और बरेली आदि शहरों में पहुँचा । परिणाम यह हुआ कि गेहूं
सस्ता होगया । जिको कम होगई। कितने ही व्यापारी अपनी मुद्दती टुंडियां
सकारने अथवा भुगताने में असमर्थ होगये और उनकी सान मारी गई,
अर्थात् उनका दिवाला निकल गया।
साल की बदौलत जब माल की खरीद बहुत होने लगती है तब खरीदे
गये माल की कीमत पर साख का बड़ा असर पड़ता है। जो चीज़ जितनी
हाँ अधिक खरीदी जाती है, उत्पत्ति के खर्च से उतनी ही अधिक उसकी
कीमत भी बढ़ जाती है। ऐसा होने, और सान पर व्यापार करने वाले
व्यापारियों को मनसूबाज़ी के कामयाब न होने, तथा लिखी गई एडियों
के न सकारे जाने से बड़ा कठिन प्रसङ्ग उपस्थित होता है। ऐसी अवस्था में,
कुछ समय के लिए, साख का व्यापार अर्थात् ९डी का लेन देन बिलकुल ही
बन्द पड़ जाता है। कितने ही व्यापारियों का व्यापार-व्यवसाय धूल में मिल
जाता है। क्योंकि साल के डामाडोल होने के कारण वे लोग अपनी लुदियों की
मुद्दत नहीं बढ़ा सकते । रुपया डूबने के हर से लोग हुंडी लेते ही नहीं ।
ऐसे समय में सिर्फ सरकारी नोट और नकद रुपये से ही कारोबार होता है।
अन्त में माल की खरीद बहुत कम हो जाती है । चीजों की कीमतें
उतरने लगती है, यहां तक कि उत्पत्ति के सर्च से पहले वे जितनी ज़ियादह
थीं उतनी हों अब कम हो जाती हैं। इस से सिद्ध है कि जब सान का
दुरुपयोग किया जाता है और पदार्थों की कीमत जान बूझ कर बढ़ाई
जाती है तब व्यवसायियों पर ऐसे ऐसे कठिन प्रसङ्ग आते हैं । नादानी के
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साख।