इटलीवालों ने इस कर्ज का नाम रक्खा "मंटी" (Monte)। उस समय
इटली के कितनेही स्थानों में जर्मन लोगों का भी राज्य था। इससे जर्मन-
शब्द “बैंक" ( 3uck) भी इटली में प्रचलित था। इन्ही "मंटो" और
"बैंक" शब्दों के योग से धीरे धीरे एक नया शब्द “बैंको" (Banes)
प्रचलित हुआ। विनिस-राज्य ने कानून बनाकर नगर-निवासियों से जो रुपया
अर्ज़ लिया उसे राजकीय काम में सर्च किया और कानून के रू से कर्ज देने-
चालों को घर रूपया चापस पाने का हक दिया । यही नहीं, किन्तु उसने यह
भी नियम बना दिया कि कर्ज देनेवाले, अपने इस रूपया चापस पाने के
एक को, और लोगों को हस्तान्तरित भी कर सकेंगे। तभी से इस बैंकिंग
कारोबार का सूत्रपात हुआ । और इटालियन "को" (Dance) और
जर्मन बैंक (BEE) शब्द का अंगरजी "वैक" ( Bank ) शब्द बना ।
बैंकर अर्थात् बैंकयाले कई तरह के काम करते हैं । उनका खास काम
यह है कि वे उन लोगों से थोड़े सूद पर रुपया कर्ज लेते हैं जिनके पास
नकद म्पया होता है, जिसे वे खुद किसी काम में नहीं लगा सकते । इस
रुपये को बैंकर ऐसे लोगों को ज़ियादह सूद पर देते हैं जिन्हें माल वगैरह
श्वरीदने या और किसी जरूरी काम के लिए यह दरकार होता है। दुकानदार
या व्यापारी आदमी रोज़ माल बेचते हैं। रोज़ उनके पास रुपया पाया
करता है। जब तक वे और माल नहीं खरोदते तब तक उस रुपये की उन्हें
ज़रूरत नहीं रहती। इसके सिवा तननाद, लगान, मकानों वगैरह का
किराया, हर तीसरे या छठे महाने पाई हुई पेन्शन का रुपया-इसी तरह
पार भी कितनी ही तरह की आमदनी-लोग एक दमदी नहीं खर्च कर
'देते । इस लिप ये सब रुपये को घर में न रखकर, जितने रुपये की उन्हें उस
समय ज़रूरत नहीं रहती, उत्तने को किसी बैंक में जमा कर देते हैं । ऐसा
फरने से उनका रुपया भी महफूज रहता है और उन्हें सूद भी मिलता है।
चाही रुपया यदि घर में पड़ा रहे तो चोरी जाने, खो जाने, जल जाने या
पार किसी तरह मए जाने का डर रहता है । साथही, उससे कुछ आमदनी
भी नहीं होती । इसीसे समझदार आदमी कार रुपये को बैंक में जमा कर
देते हैं। इस जमा करने का नाम "डिपाजिट" (Deposit ) करना, अर्थात्
अमानत के तौर पर रखना, है । वैकवाले अमानत के रुपये को कई शती पर
रखते हैं। यथा-
पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/२४९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२३०
सम्पत्ति-शास्त्र।