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बैकिंग।


(क) तीन महीने, छ: महीने, वर्ष दिन या इससे कमोवेश मुद्दत के लिए अमानत । इसे अँगरेजी में "फिक्सड डिपाजिट" (Fixeil Dekrit) कहते हैं। इस तरह की अमानत रखने में बैंक से यह शर्त करनी पड़ती है कि निश्चित मुद्दत के पहले हम अपना रुपया वापस न लेंगे। मुदत जितनी ही पधिक होती है, सूद भी उतमाही अधिक मिलता है । मुद्दत का दिन माने पर सूद सहित असल रुपया बैंक लौटा देता है। (ख) रोजमर्रा के हिसाब की अमानत । इसे अँगरेजी में “करंट अका- संट (Current Account ) कहते हैं। इस तरह की अमानत से आदमी जब जितना रुपया चाहे ले सकता है, और जब जितना चाहे जमा कर सकता है। ऐली अमानत पर कोई कोई बैंक बिलकुल ही सूद नहीं देते; जो देते हैं, . बहुत कम देते हैं। इस तरह के हिसाव की रक़मों से रुपया निकालने के लिए एक "चेक" अर्थात् आदेशपत्र या हुकूमनामा बैंक के नाम लिखना पड़ता है। उसमें जितना रुपया लिखा रहता है उतना रुपया बैंक, जमा करनेवाले को या जिस किसी का नाम चेक में लिखा हो उसे, वैदेता है। हाँ अमानत के रुपये से अधिक रकम केलिए यदि चैक लिखी जाय तो उसे देने में बैंक पतराज करता है। इस तरह बैंक की निज को पूँजी के सिवा और बहुत लोगों का रुपया उसके पास जमा रहता है । इस सब रुपये से बैंक कई तरह के कारोवार करता है। वह लोगों को कर्ज देता है और हुंडियां घगैरह वरीद करता है। इसके सिंचा बह विलायती हुँद्धियों का भी कारोबार करता है। वह हमेशा अपने पास इतना रुपया रखता है कि यदि रुपया जमा करनेघाले अपनी अमानत चापस मांगे तो वह तुरन्त उन्हें देसके। परन्तु ऐसा संभव नहीं कि सब लोग एक दमही अपनी अपनी अमानतफा रुपया माँगने लगें। यदि कुछ लेलेते है तोकुछ और नई अमानत रन जाते हैं। अतएव रुपया जमा करने- घालों को समय समय पर उनका रुपया लौटाने के लिए बहुत थोड़ा रुपया बैंक में जमा रखने ही ले काम चल जाता है। कितना रुपया हमेशा बैंक में जमा रखना चाहिए, यह बात धैंकबालों को तजरिये से मालूम हो जाती है। जिस बैंक की पूँजी, मान लीजिए, १० लाख रूपया है । यह अमानत के रुपये की घदालत उससे कई गुने अधिक रुपये का व्यवसाय कर सकता है। परन्तु इस तरह व्यवसाय को बहुत अधिक फैलाने में बड़ी होशियारी