पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/२५४

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हुंडी के चलन से व्यापार-व्यवसाय में बड़ा सुभीता होता है । जुडी एक प्रकार का कागजी रुपया है। सास की बदौलत वह ठीक रुपये का काम देती है। कल्पना कीजिए कि रामगोपाल रामदास ने शिवराम शङ्करलाल से दस हजार का कपड़ा वरीदा। उसे बचकर रफ़म वसूल करने के लिए रामगोपाल रामदास को कई महीने चाहिए । पर कपड़े की कीमत शिवराम शङ्करलाल को उसी दम देना है अथवा उसका समझौता करना है। मक़द रूपया उतना रामगोपाल रामदास के पास है नहाँ । अतएच रामगोपाल रामदास शिवराम शङ्करलाल को इस बात पर राजी करंगा कि वह दस हज़ार रूपये की उसको साख माने । इस पर शिवराम शङ्करलाल, रामगोपाल रामदास पर एक हुंडी करंगा और उसमें लियेगा कि आज से तीन महीने (या जितमी मुद्दत ठहर जाय) बाद मुझे, या जिसे मैं एकम दू उसको, दस हजार रुपये की रकम अदा की जाय । इस हुंडो पर रामगोपाल रामदास यह लिख कर कि, इसे मैने मंज़र किया, अपने दस्तपत कर देगा। अब यदि शिवराम शहरलाल और रामगोपाल रामदास दोनों को साख अच्छी है तो कोई भी बैंक इस हुंडी को परीद लैगा और बह का रुपया काट कर वाफ़ी रकम टुंडीयाले के नाम जमा कर लेगा । या यदि रूपया नक़द माँगा जायगा तो नकद देगा ! तीन महीने की मुद्दत पूरी होने पर बैंक इस हुंडो का पूरा रुपया रामगोपाल रामदास से मांगेगा । यदि वह रुपया देने से इनकार करेगा तो हुँडी बेचनेवाला, शिवराम शङ्करलाल, रुपये का देनदार होगा। इस तरह की टुंडियां अकसर एक आदमी दूसरे के हाथ वेंचा करता है पार उनपर "बैंचा" लिख कर अपने दस्तखत कर दिया करता है, जिसका मतलब यह है कि खरीदार को उनका म्पया मिल जाय । जब टुंडियों की मुद्दत पूरी हो जाती है तब पाखिरी परीदार, जिनके नाम दुडियां लिखी गई होती हैं, उनसे रुपया मांगता है । यदि-वे कपया देनेसे इनकार करते हैं तो. हर खरीदार अपने से पहले खरीदार परमपये फा.दावा करता है। टुडियों के प्रचार संसाने चांदी के सिक्के की ज़रूरत बहुत कम हो जाती है। विदेश से व्यापार करने में इस प्रथा से बड़ा सुभीता होता है । हिन्दुस्तान मार रंगलैंड में परस्पर बहुत व्यापार होता है । जितना माल पक देश दूसरे सं यरीदता है उसको फोमत यदि सिके के रूप में देनी पड़े तो व्यापार में घड़ी बाधा उपस्थित हो जाय पार रुपया भेजने की जिम्मेदारी भी बहुत बढ़