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सम्पति-शास्त्र ।


चेक को इलाहाबाद बैंक में भेज देगा, क्योंकि उसका रुपया वहीं जमा है। अब कल्पना कीजिए कि हरदत्त का रुपया इलाहाबाद बंक में जमा है । उसने पक हज़ार का चैक इलाहाबाद बैंक पर लिन कर शिवदत्त को दिया । शिवदत्त ने उसे बंगाल बैंक को भेज दिया क्योंकि उसका हिसाब उस बैंक से है । अब बंगाल बैंक पर लिखा हुमा हज़ार रुपये का चेक इलाहाबाद बैंक के पास हो गया और इलाहाबाद बैंक पर लिखा हुमा उतने ही का चक बंगाल बैंक के पास हो गया । अतएव दोनों बैंक परस्पर एक दुसरे के चेक की अदला बदल कर लेंगे। किसी को रुपया देने को जरूरत न पड़ेगी। हां यदि किसी का चेक हज़ार रुपये से ज़ियादह का हो तो जितमा रुपया ज़ियादह होगा उतना देकर हिसाव साफ़ कर लिया जायगा। कोई कोई बैंक अपने नोट भी चलाते हैं। इंगलैंड के बैंक के नोट विलायत में पैसे हो चलते हैं जैसे यहाँ सरकारी नोट चलते हैं। बैंकनोट पार हुडी मैं सिर्फ इतना ही फरक है कि नोट दिखाने के साथ ही रुपया 'देना पड़ता है, पर हुंदी में जो मुद्दत लिखी रहती है उसी समय रूपया मिलता है । हिन्दुस्तान में बैंक नोट नहीं चलते । हुंडी, चेक पार नाट सारन के दर्शक चिन्ह हैं । उन्हें देख कर, सारख के बल पर, उनमें लिखी गई रकम लोग बे-खटके दे देते हैं। वकों का काम बद्भुत नाज़ुक होता है । बड़ी होशियारी और बड़ी दूरन्देशो से काम करना पड़ता है। बैंकर लोग लाखों रुपया लोगों से क़र्ज़ लेकर जमा कर लेते हैं। जितना ही अधिक धरोहर चे धरते हैं पर उसकी “सहायता से जितना ही अधिक कारोबार वे फैलाते हैं उतनी ही अधिक उनकी जिम्मेदारी बढ़ती है। मांगने के साथ ही अमानत रखने वालों को रुपये देने के लिए चे, अपनी समझ के अनुसार, काफ़ी रुपया वहवील में रखते हैं। परन्तु रुपये की तेज़ी तथा सराफों के दिवाले निकलने पर अकसर ऐसा होता है कि किसी कारण से तकाज़ा अधिक हो जाता है- बहुत आदमी पक ही साथ अपना रुपया वापस मांगने लगते हैं। इस दशा में, यदि मतलब भर के लिए बैंक में रुपया न हुआ, और यदि कोई दूसरा प्रबन्ध भी न हो सका, तो बैंक खरीद की हुई हुँडियों को बेच देता है या उनको कहीं गिरवी रख कर रुपया इकट्ठा करता है। इस प्रकार उसे