पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/२५८

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बैंकिंग। २३९ सफ़ाज़ों का भुगतान करना पड़ता है। जिस तरह पार व्यवसायी सस्ते भाष से माल खरीद फर महंगे भाव वेचते हैं, उसी तरह बैंक भी बहा काट कर कम कीमत पर हुँडी बरोद करता है और मुद्दत पूरी होने पर हुंडी मंजूर करने वाले से हुंडी में लिखी हुई पूरी रकम वसूल करता है। परन्तु यदि उसे घरीद की मुई टुंडियाँ बेचनी पड़ती हैं तो उसे भी बद से गम खाना पड़ता है। हुंडी के पार दुसरे.-व्यवसायों में भेद प्रसना ही है कि पार व्यवसायों में माल परीद करने से यदि वह न विका तेा जिससे वह - खरीद किया गया.है.वह उसके.न.बिकने का जिम्मेदार नहीं होता। किन्तु बैंकर लोग हुंडी खरीद करते समय इस बात को चिन्ता नहीं करते कि वह पर जायगी या नहीं। टुंडी की मुद्दत बीतने पर जिसने उसे वैचा होता है उसे उस हुंडी को पटाने के लिये वे वाध्य कर सकते हैं। यदि -यह- भुगतान फरने से इनकार करता है तो जिस ने हुँडो लिग्त्री होती है.उस.से, अथवा हुंडी की पीर पर "येत्रा" लिख कर जिसने उसे इस्तान्तरित की होती है उससे, हुंडी में लिखा गया रुपया पसल पाने का वकर दावा कर सकता है। सारांश यह कि टुंडियाँ खरीदने वालों को यह निश्चय रहता है कि वे ज़रूर विक जायेंगी और उममें लिखी हुई रकम ज़रूर मिल जायगी। परन्तु और माल खरीद करने वालों को इस बात का निश्चय नहीं रहता। यही इस दो प्रकार के सौदे में भेद है। . टुंडियां बेचने वालों की साम्पत्तिक अवस्था पार उनके साज-विश्वास को खूब जाँच करके कर लोग उन्हें खरीद करते हैं । जब उन्हें विश्वास हो जाता है कि रुपया दबने का डर नहीं तभी हुँडियाँ खरीदते हैं। वे देख लेते हैं कि बाकायदा हुँडी लिखी गई है या नहीं ? स्टाम्प ठीक लगा है या नहीं ? जिसके नाम लिखी गई है उसने मंजूर कर लिया है या नहीं? जब सब तरह से उनकी दिलजमई हो जाती है तब उसे खरीद करते हैं। बैंकर लोग बहुधा जियादह दिन की मुद्दती हुंडी नहीं खरीद करते । क्योंकि उसके सकारने के लिए उन्हें बहुत दिन ठहरना पड़ता है। इस से उन्हें कारोबार में सुभीता नहीं होता। लास्त्रों रुपये की हुंडियाँ खरीद करके उनको रकम (ना काट कर) वे अपने खाते में घेचने वालों के नाम लिख रखते हैं। यदि टुंडियां घेचने के कुछ ही दिन बाद उनकी मुद्दत पूरी होने के पहले ही बहुत लोग इंडियों का रुपया पैंकरों से मांगने लगें तो उत्तना