पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/२६०

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धकिंग। २४९ पैंक से कर्ज लेने के मुख्य तीन प्रकार हैं । यथा :- (१) चट्ट बाद कम से कम दो आदमियों की हस्तान्तरित अर्थात् निचान की हुण्डी देकर, (२) अपने रोजमर्रा के घलित हिसाष में जितना रुपयश जमा है उससे अधिक रूपया लेकर (३) बाकायदा दस्तावेज़ लिख कर या योंही साधारण तौर पर लेकर। हुण्डियों का जिक्र पहले हो चुका है। बैंक हुंडी लेलेता है और बधाकार कर शेष रुपया हुंडी बेचनेवाले को देदेता है । या उसके नाम जमा करलेता है और जैसे जैसे वह मांगता है देता जाता है। यह भी एक प्रकार का कर्ज प्योंकि हुंडी घेचनेवालारुपया तो बैंक को देता नहीं, एकचार अंगुल का कागज मात्र देता है । उस इंडीरूपी काग़ज़ के मंजूर-करनेवाले से जब-तक बैंक रुपया-वसूल नहीं पाता तब तक जो रूपया उसे देना पड़ता है.वह. भानों कर्ज के तौर-पर-देना पड़ता है। दूसरे और तीसरे प्रकारानुसार उधार लेने मैं विशेष तर्क है । बैंक में जमा किये गये रुपये से जितना अधिक रुपया कर्ज लिया जाता है उतने अधिक रुपये पर ही, लेने के दिन से, सूद देना पड़ता है। इस तरह जैसे जैसे जरूरत पड़ती है लोग कर्ज लेते जाते हैं। जिस दिन यह अधिक रुपया लिया जाता है उसी दिन से सूद देना पड़ता है। फिन्तु साधारण रीति से कर्ज लेने पर सय रुपया एक दमही लेना पड़ता है और उसे अपने घर में रख कर जैसे जैसे ज़रूरत पड़ती है खर्च करना पड़ता है। चाहे उसे कर्ज लेनेवाला एक दिन में खर्च करदे, चाहे एफ घर्ष में। इस तरह कर्ज ली गई पूरी रकम पर लेनेके दिनही से बैंक को सूद देना पड़ता है। इससे साफ़ ज़ाहिर है कि तीसरे प्रकारानुसार कर्ज लेने की अपेक्षा दूसरे प्रकारानुसार कर्ज लेना अधिक लासदायक है । क्योंकि दूसरे प्रकारानुसार जितना रुपया खर्च करने की ज़रूरत होती है उतना बैंक से ले लिया जाता है और उतनेही पर सूद देना पड़ता है। परन्तु तीसरे प्रकारानुसार सब रुपया एक दमही लेकर घर रखना पड़ता है और उस सब पर सूद देना पड़ता है। अर्ज लेनेवाला यदि चाहे कि तीसरे प्रकारा-