पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/२६२

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बैंकिंग। लिया कि महाजनों के हाथ चिके । फिर वे किसी तरह नहीं उबरते । क्योंकि प्रायः उन्हें हर महीने हर रुपये पीछे एक पाना सूद देना पड़ता है। यह ७५ रुपये सैकड़े लाल को शरह दुई! फिर भला इतमा सूद देकर कौन महाजनों के चंगुल से बच सकता है ? इस दुर्व्यवस्था से बचने के लिए गवर्नमेंट ने बड़ी कपा फरके कुछ समय से “को-आपरेटिव क्रेडिट सोसाइटीज़" नाम के महाजनी धैंक खोलने का प्रवन्ध कर दिया है। इस तरह के बैंक हर गाँव, हर सये पार हर शहर में हो सकते हैं। आज तक इस तरह के कितने ही बैंक न्युल चुके हैं और बहुत कुछ लाभ पहुँचा रहे हैं। दस पाँच आदमी मिल कर इस तरह के बैंक हर गाँव में खोल सकते है। ये बैंक सम्भूय समुत्थान के तरीके से खोले जाते हैं। जितने आदमी बैंक से सम्बन्ध रखना चाहते हैं सब को थोड़ा थोड़ा चन्दा, अनाज था रुपये के रूप में, देना पड़ता है और जितना रुपया या अनाज वे इकट्ठा करते हैं उतना, जमरत होने पर, गवर्नमेंट अपनी तरफ से उधार दे देती है। उस पर गवर्नमेंट को तीन वर्ष तक कुछ सूद नहीं देना पड़ता। जो लोग इस तरह के बैंक मिल कर खोलते हैं उनको उनसे बीज के लिए, हल थैलों के लिए, निकाई सुताई आदि के लिए बहुत थोड़े सूद पर रुपया मिल जाता है। और जो रुपया या अनाज वे बैंक में जमा करते हैं वह भी कहीं नहीं जाता। देहाती बैंक कसबाती बैंकों की शान बनाये जा सकते हैं और कसबाती बैंक जिले के बैंकों की । इस प्रबन्ध से कर्ज लेने में और भी मुभीता होता है। इस तरह के बैंक यदि अच्छी तरह चलाये जायें तो इनकी पूँजो बहुत जल्द बढ़ जाती है और रुपया नहीं मारा जाता। इन बैंको..से बड़े फायदे हैं। एक तो इसके-मेम्बर-जरूरत के समय इन से कर्ज पा सकते हैं। दूसरे महाजनों के चंगुल से बच जाते हैं। तीसरे उन्हें अपनी · आमदनी से कुछ बचाने की आदत है। आती है। इस तरह के बैंक खोलने -के कायदे हर जिले की कचहरी में मिल सकते हैं और जिले के हाकिम बैंक खोलने वालों को सब बातें अच्छी तरह समझा सकते हैं। इस कृपा के लिए गवर्नमेंट का अभिनन्दन करना चाहिए और इस तरह के बैंक खोल कर उन से लाभ उठाना चाहिए।