पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/२६४

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२४५ बीमा। साय करने लगते हैं। इस देश में भी इस तरह की कम्पनियां हैं। बंबई की "ओरियंटल लाइफ अशूरेन्स कम्पनी का नाम बहुत लोगों ने सुना होगा। इसके हिस्सेदार मायः इली देश के हैं। यह जाधन बीमे का काम करती है। अत्रि-वीमे और वारि बीमे का काम करनेवाली कम्पनियां भी कई एक है। बीमा-विधि का आन्तरिक अभिप्राय परस्पर एक दूसरे की सहायता करने, और जो लोग मध्यस्थ हो कर सहायता करते हैं उनको पुरस्कार के तौर पर कुछ देने, के सिवा और कुछ नहीं है। बैंक में जैसे एक आदमी रुपया जमा करता है और दूसरा निकालता है, और औसत लगाने से बैंक की तहवील में कोई विशेष कमी धेशी नहीं होती, वैसे ही बीमा करनेवाली कम्पनियों का भी हाल है। कुछ बीमा करनेवाले लोग मरते हैं, कुछ नये बीमा कराते हैं। कुछ जहाज़ डूबते हैं, कुछ निर्विन अपने निदिष्ट स्थान को पहुँचते हैं, कुछ इमारतें जलती हैं, कुछ नहीं जलत्तौं । जो लोग जिन्दा हैं वे अपने बीमे का रुपया देकर मानों मरे हुओं के कुटुम्थियों की मदद कर रहे हैं। जहाज डूबने और माल असबाब जलने पर जो हानि पूरी करनी पड़ती है उसका भी यही हाल है। वह क्या बीमे की कम्पनियां अपने घर से देती हैं ? नहीं, लोगों का रुपया जो उनके पास जमा रहता है उसीसे वे उसको पूर्ति करती हैं । बीमे की कम्पनियां मध्यस्थ मात्र हैं। क्षति की जो पूर्ति होती है वह बीमा करानेवालोही के रूपये से होती है। बीमा कम्पनियाँ बहुत करके हमेशा फ़ायदेही में रहती है। उन्हें शायदही कभी नुकसान होता हो। क्योंकि हानि की जितनी संभावना होती है उससे वे हमशा अधिक रुपया बीमा करानेवालों से वसूल कर लेती है। यह वो संभवही नहीं कि बीमा किये गये सब आदमी पकही साथ मर जायें या बोमा की गई सब इमारतें एक ही साथ जल जाय, या बीमा किये गये सब जहाज़ एकहो साथ डूब जायें । ऐसा होता तो धीमा करनेवाली कम्पनियों पर ज़रूर आफ़त पासी–उनका असर दिपाला निकल जाता। पर ऐसा बहुत कम होता है। फ्री लदी बहुत कम आदमी भरते हैं, बहुत कम इमारतें जलती है; बहुत कम जहाज डूबते हैं। जब कोई आदमी अपना या किसी मकान या जहाज़ आदि का बीमा कराता है तब उसे एक निदर्शनपत्र मिलता है। बीमा से सम्बन्ध रखने धाली शसँ उसमें दर्ज रहती हैं। उसका अँगरेजी नाम "पालिसी" (Policy)