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सम्पत्ति-शास्त्र।

है। यदिधीमा जीवन-सम्बन्धी है तो उसे "लाइफ पालिसी" (Life Policy), यदि अग्नि-सम्बन्धी है तो "फायर पालिसी" (Wire Policy); और यदि समुद्र सम्बन्धी है तो "मैरीन पालिसी" (Marine Policy) कहते हैं। जो लोग जो जन-समुदाय-मृत्यु होने, या जहाज डूबने या चीज़- वस्तु जल जाने से, क्षति की पूर्ति कर देने की जिम्मेदारी लेते हैं उन्हें " इन्शूरर" (Insurer ) अर्थात् बीमाचाला कहते हैं । जो बीमा कराते हैं . ये "इन्स्यूई" ( Lingured) अर्थात् बीमाकारी कहलाते हैं । बीमाकारी को हर लाल, हर छठे महीने, हर तीसरे महीने, या हर महीने जे रुपया भीमा- बालों को देना पड़ता है उसे "प्रीमियम" ( Preunium ) अर्थात् फ़िस्त- बन्दी कहते हैं। बीमे की शर्त पालिसी में छपी रहती है । नाम इत्यादि लिखने के लिए जो जगह खाली रहती है वह पालिसी लिखते और दस्तखत करते समय भर दी जाती है। पालिसी के फ़ार्म में कुछ विशेष बातें भी रहती हैं। आवश्यकतानुसार वे काट दी जाती है; या उनमें फेर फार कर दिया जाता है। अग्नि-बीमा । बीमे के काम में बहुत अधिक तजरिबेकार एक साहब की राय है कि और बीमे की अपेक्षा आग के चामे से लोगों को विशेष लाभ होता है। मनुष्यों की अपमृत्यु और जहाजों के सहसा इन जाने की घटनाओं की अपेक्षा आग लगने की घटनायें अधिक होती है। नहीं मालूम कल किसी

के घर में, या गोदाम में, या कारखाने में आग लग जाय और उसका सारा

माल-असबाब, घर-छार, जल कर भस्म हो जाय | अभी उस साल बम्बई में न मालूम राई का कितना स्टाक" जल गया । जिन फल-कारखानों में यंजिन चलते हैं मार बहुत आदमी काम करते हैं उनके आग से बड़ा डर रहता है। यंजिन उड़ा हुआ पक ही अग्नि-कण, या काम में लगे हुए आदमियों की चिलम से गिरी हुई एक ही चिनगारी, लाखों रुपये का माल जला कर साफ कर सकती है । रुई इत्यादि ऐसी चीजें हैं जो एफ जगह पर दना कर रक्खी रहने से भीतर ही भीतर बहुत गरम हो जाती हैं और आप ही आप जल उठती हैं। इस तरह की दुर्घटनामों