पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/२६६

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धीमा। २४७ से होने वाली हानि से बचने के लिए लोग अनि-चीमा कराते हैं। बड़े बड़े शहरों में इस तरह के नीमे अब अधिकता से होने लगे हैं । जो मनुष्य कोई अच्छा मकान, होटल या कारखाने की इमारत बनाता है वह अक्सर उसका बीमा करा देता है । इस तरह का बीमा करने वाली अब स्वदेशी कमनियाँ भी इस देश में बड़ी हो गई हैं। जिस मकान, गोदाम या कारखाने का बीमा होता है उसकी पालिसी में लिन दिया जाता है कि यह आग से जल जाय तो बीमे वाला इतना • रुपया हानि का बदला देगा। उस से अधिक रुपया पाने का दावा बीमा कराने वाला नहीं कर सकता । जितना रुपया पालिसी में लिखा रहता है यह सब हमेशा नहीं मिलता। जितना नुकसान होता है उतना ही मिलता है। कल्पना कीजिए कि किसी ने अपने गोदाम का बीमा एक लाख रुपये का कराया ! देचयेाग ले उसमें आग लग गई और ५० हजार का माल जल गया। इस दशा में गोदाम का मालिक ५० हजार से अधिक रुपया धीमा- कम्पनो से न पा सकेगा । यदि वह कहे कि मेरा इतना माल न जल जाता तो मुझे उससे ५ हजार मुनाफे का मिलता, अतएव मुझे ५५ हजार हरजाने का मिलना चाहिए, तर उसका यह दावा नचल सकेगा । जितना असल में उसका नुफ़सान हुआ होगा उतने ही का बदला उसे मिलेगा, अधिक नहीं। किसी के मकान का यदि एक हिस्सा जल जाय और वद कहे, अब मैं इसमें न रहूंगा, चीमा कम्पनी इसे ले जाय और इसकी पूरी लागत मुझे दे दे, तो उसकी एक न सुनी जायगी । जितना हिस्सा जल गया होगा सिर्फ उत्तने हो का मुआविज़ा उसे मिलेगा। ये सब बातें पालिसी में साफ़ साफ़ लिखी रहती हैं जिसमें पीछे से किसी तरह का भगड़ा न हो। अमि-धीमे की कम्पनियाँ पालिसी में शर्त कर लेती हैं कि रुपया, पैसा, सोना, चाँदी, नोट, हुंडो दस्तावेजें या और कोई बही खाते वगैरह काग- जात जल जाय तो हम उनका मुआविज़ा न देंगी। इसके सिवा घे यह भी शर्स कर लेती हैं कि अगर देश में गबर हो जाय, या कोई बाहरी शत्रु चढ़ पावे, या पार किसी ऐसे ही कारण से किसी का बीमा कराया हुआ मकान या गोदाम वगैरह जला दिया जाय तो ये उसकी जिम्मेदार न होगी। फ्योंकि इस तरह की बदनाओं को रोकना कम्पनियों के बस की बात नहीं।