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सम्पत्ति-शास्त्र।

जलने का खतरा जितना ही अधिक होता है, बीमा कराई का चार्ज भी उतना ही अधिक देना पड़ता है। वारि-बीमा । . धारि-बीमे की पालिसी में जिस जहाज़ या जिस माल का बीसा किया आता है उसका वर्णन रहता है। कौन सी दुर्घटनाओं के कारण हानि होने से मुमाविज़ा मिलेगा, किस समय से किस समय तक हानि हो जाने से बीमा वाली कम्पनी ज़िम्मेदार होगी, कितना रुपया चीमा कराई देना पड़ेगा, हानि होने के कितने दिन बाद कम्पनी हानि का मुनाविज़ा देगी इत्यादि सब बाते कानूनी भाषा में लिखी रहती है। जिस जहाज में माल जाने को होता है उसके नाम की जगह बहुधा कोरी छोड़ दी जाती है, क्योंकि पालिसी लिखने के समय कभी कभी यह नहीं मालूम रहता कि किस जहाज़ में माल जायगा । इस तरह की पालिसी "फ्लोटिंग" (Floating) पालिसी कहलाती है । और जब उस पर जहाज़ का नाम लिख दिया जाता है सच यह "मेम्ड" (Kameel Poliry) कही जाती है । जहाज़ से जाने धाले माल का जो धीमा कराना चाहता है उसे इस बात का सबूत देना पड़ता है कि वह माल उसी का है। इसलिए उसे उस माल का चालान आदि दिखला कर बीमाबालों को दिलजमई करनी पड़ती है। किसी जहाज़ या उसमै लदे हुए माल को जो हानि पहुँचती है उसकी सूचना जहाज़ वाले देते हैं। किस तरह नुकसान हुआ और कितना नुकसान हुआ, सो सब वे एक कागज पर यथानियम लिखते हैं। हानियाँ दो तरह की मानी गई है-एक साधारण हानि, दूसरी विशेष हानि । यदि समुद्र में तूफान आये और जहाज हलका करने के लिए कुछ माल पानी में फेंक दिया जाय तो उसे साधारण हानि कहेंगे, क्योंकि यह सब के भले के लिप की गई । परन्तु यदि कोई ऐसी हानि हो जाय जिसके कारण किसी और का कुछ भी भला न होता हो तो उसे विशेष हानि कहेंगे। उदा- हरणार्थ जहाज़ खराब हो जाने, या उसे चलाने और लदे हुए माल को अच्छी तरह रखने में कर्मचारियों की असावधानता होने, आदि से जो हानि होती है वह विशेष हानि कहलाती है। किस तरह की हानि हुई है-- इसका निर्णय करने, और कितने रुपये की हानि हुई है-इसका हिसाव लाने