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सम्पत्ति-शास्त्र।


कम्पनी उसे, अथवा उसके पारिसों को, अथवा जिसे वह कह दे उसको, पक निश्चित रकम देती है। इस बीमे या जिम्मेदारी के बदले कम्पनी उन लोगों से कुछ सामयिक चन्दा लेती है। . बीम के नियम जुदा जुदा होते हैं। पर विशेष करके दो तरह के बीमे देखने में आते हैं। एक वे जिनमें बीमा किये गये मनुष्य की मृत्यु पर कम्पनी धम देती है । दूसरे वे जिनमें किसी निश्चित उन तक (अधिकतर ५०, ५५ या ६० वर्ष की उम्न तक)जीवित रहने से, स्वयं बीमा किये गये मनुष्य, या मीयाद के पहले ही उसके मर जाने से उसके चारिसों को, कम्पनी नियत धन अदा करती है । पहली सूरत में उस मनुष्य को अपने जीवन-पयन्त, और दूसरी सूरत में निश्चित उम्न तक या उसके पहले ही मर जाने से मरने के समय तक, अपना सामयिक निश्चित चन्दा अदा करते रहना चाहिए । नियत समय पर चन्दा न पहुँचने से बीमा, नियमा- नुसार, टूट जा सकता है, और जो रुपया उस समय तक अदा किया गया हो उस से या तो उस आदमी को एक दम ही हाथ धोना पड़ता है, या नियमानुसार जैसा उचित हो किया जाता है। इनके सिवा और भी कई तरह के बीमे होते हैं, पर यहाँ पर हम इन्हीं दो तरह के चीमे की बात कहेंगे। क्योंकि उचित फेरफार करने से इनकी सब बातें और तरह के धीमों पर भी प्रायः घरित होती हैं। . बहुधा देखा गया है कि ५००० रुपये का जीवन बीमा कराने वालों को निम्नलिखित हिसाब के लगभग मासिक चन्दा देना पड़ता है।- (क) यदि ५५ साल की उम्र पर, या उसके पहले मृत्यु हो जाने से तत्काल, कम्पनी को रूपया अदा करना पड़े- यदि अागामी जन्म-दिन पर २५ साल पूरे हों तो १५ से १७ रुपये मासिक देना पड़ता है। १८ से १९ , ३५ २ २ से२३॥ " ___ ४० , २९ से ३१ , , ४५ ४५ सेवा ,