पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/२७०

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चीमा। (ख) यदि मरने पर ही वीमे का रुपया मिलना हो- यदि भागामी जन्म-दिन पर २५ साल पूरे हों तो ११ से १२ रुपये मासिक देना पड़ता है। " ३०० १२॥ से १३ " ३५ ॥ १२ से १० ॥ " , ४ , १५॥ से १ , ४५ , १८ से १९ ., इस हिसाब से स्पष्ट है कि जितनी ही कम उम्र में बीमा कराया जाय उतभा ही कम मासिक, या अन्य सामयिक, चन्दा देना पड़े। क्योंकि सम्भावना यही रहती है कि वह मनुष्य उत्तने ही अधिक दिन तक जीता रहेगा और कम्पनी को उतनी ही अधिक किस्ते अदा करेगा। केवल मृत्यु पर हिसाब बन्द करने वाले की अपेक्षा ५५ साल पूरे होने, या उसके पहले ही मृत्यु हो जाने से तत्काल, बी का रुपये लेने वाले की सामयिक किस्त का रुपया अधिक होना ही चाहिए, क्योंकि ५५ साल के बाद वह अवश्य ही चन्दा देना बन्द कर देगा। परन्तु पहले प्रकार के वीमे बाला पादमी, सम्भव है, Gorce अथवा ९० वर्षे तक चन्दा देवा ही चला आय | ऊपर दिये हुए हिसाब से पाठक यह भी स्वयं जान सकते हैं कि १००० रुपये से लेकर १०-१५ हजार तक का बीमा कराने में सामयिक घान्दा प्रायः कितना देना पड़ेगा ! इसलिए अधिक ब्यौरा देने की यहाँ आवश्यकता नहीं। बीमे से लाभ । सब से बड़ा, और प्रायः एक मात्र वास्तविक, लाभ धीमे से यह है कि जो लोग नौकरी पेशा है, और घर के मालदार नहीं हैं, एवं थोड़ी तनाशाह होने, अथवा किसी और कार से अपने परिवार के लिए कोई ऐसा प्रबन्ध नहीं कर सकते, जिस से उनकी अकाल मृत्यु कम उम्न में हो जाने पर, उनके कुटुम्ब को कष्ट न भोगना पड़े, लोग २-३ हार का जीवन बीमा फराक इसका मधन्ध कर सकते हैं। दस बीस रुपये से लेकर प्रायः १००- १२५ रुपये मासिक तक की आमदनी वाले इस प्रकार के लोगों को जीवन- बीमा करा लेना अत्यन्त आवश्यक जान पड़ता है। न जाने कब शरीर कट जाय और बिना बीमा के, सम्भव है, स्त्री और बच्चे टक्के टके को इधर उधर भटकते फिरें। बीमा करा लेने से लड़के वालों को बहुत कम चिन्ता