पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/२७२

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धीमा । अधिकांश सरकारी नौकरों और अन्य प्रकार के लोगों को पेन्शन इत्यादि के कारण स्वयं अपनी विशेष चिन्ता नहीं करनी पड़ती । पर जिन लोगों को पैसा अवलम्बन हो, उन्हें अपने ही बुढ़ापे के विचार से, ५५ या ६० साल को उन्नवाला चीमा करालेमा उचित कहा जा सकता है। ऐसे ही पार कई लाभ वीमे से हो सकते हैं। वीमे से हानियां। यों तो बहुत ली हानियां संभव हैं ; पर हम यहां पर केवल एकही हानि का उल्लन कर देना बस समझते हैं। क्योंकि एक तो वास्तविक हामि केवल इसी को कह सकते हैं, दूसरे एक मात्र यह हानि अनेक मनुष्यों को समी लाभों से यञ्चित रखती है । वह हानि यह है कि बीमा करानेवालों को विशेष संभावना आर्थिक हानिहीं की होती है, लाभ की नहीं । प्रायः पच्चीस तीस वर्ष के ही मनुष्य जीवन-चीमा कराते है । उसके पहले बीमे की बात ही कहां? बीमा करने के पहले कम्पनियां सब लोगों को भली भाँति डाकरी परीक्षा करा लेती हैं। इसके सिवा बीमा वही कराता है जो पाने पीने से मुखी होता है। अतः इस उम्न के तन्दुरुस्त भादमियों में से हजार में पचास साठ चाहं भलेही जल्द मर जायें; पर, अधिकांश, कमसे कम, साठ पैंसट साल की उम्र तक अवश्यही जीवित रहेंगे। पार, सम्भय है, कि सौ डेढ़ सौ आदमी ७० पार ८० वर्ष तक भी पहुँच जायें । क्योंकि खूब तन्दुरुस्त आदमी, बीस पच्चीस साल की उम्न हो जाने पर, शीघ्र नहीं भरते । हैजा, लंग, बुनार इत्यादि सभी वलायें सर्व-साधारण मनुष्यों में से, जिनमें नय- जात बचों से लेकर सौ वर्ष के घुडढे तक शामिल हैं, प्रति हजार केवल ३५ से लेकर कुछ कम १५ तक ही मनुष्यों को, वर्ष भर में, काल-कचलित कराने में समर्थ होती है । पर यदि २५ से ६० वर्ष वालों की मृत्यु का लेखा अलग लगाया जाय और उसमें केवल वही लोग जोडेजायें जो जीवन बीमा कराने का सामर्थ्य रखते हों (पयोंकि सैकड़े पीछे केवल दसही पन्द्रह मनुष्य ऐसे निकलेंगे, और, शेप, थोड़ी हैसियत रखने अथवा बुरे स्वास्थ्य के कारण गाना के बाहरही रह जायंगे ) ता हजार पीछे, साल भर में, मृत्यु-संख्या कदाचित् तीन-चार मनुप्यों से अधिक न निकलेगी। अतः यह स्पष्ट है कि ____ * सन् १६.1 ईसत्रों की भारतीय मनुष्य-धना की रिपोर्ट, जिल्द , भाग), पृष्ठ ४७६ देखो।