पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/२७६

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धीमा ३ या किसी तन्दुरुस्त आदमी का ८० वर्ष तक जीता रहना असंभव है ? कम से कम ६०-६५ तक तो वह अवश्य ही चलेगा । सो उसे ६० घरं की उच्च में मरने पर साढ़े तीन हज़ार, और ६५ वर्ष की उम्र में मरने पर सब छ हजार का घाटा होना संभव है। और जो कहाँ वह ८० वर्ष तक जी गया तत्र तो सवा अठारह हज़ार के मत्थे जायगी 1 कम से कम इन नक़शों में इतना तो ज़रुर ज़ाहिर होता है कि धीमा करानेवालों को कुछ न कुछ आर्थिक-हानि हो की अधिक संभावना रहती है। अतः बिना विशेष अघिश्यकता के बीमा कराना भूल है। पर आवश्यकता होने से बीमा ज़रूर करा लेना चाहिए, अन्यथा संभव है कि बुढ़ापे में आदमी खुदही, या उसकी अकाल मृत्यु होने से उसके लड़के वाले, एक एक कौड़ी के लिए मारे सारे फिरे । हुनि का तो यह हाल है कि पहले नकशे के अनुसार ४७ में और दूसरे के अनुसार ५२ वें साल से ही चीमा किये गये मनुष्य हाभि उठाने लगते हैं ! भला इस घाटे का कहीं दिकाना है !! और जो कहीं कोई दूसरे नशैवाला अादमी ९०-९५ ६६ तक जी गया तो वह तो मानों बीमाकम्पन के लिए कल्पवृक्ष ही होगया!!! घहुत सी कम्पनियाँ कुछ दिनों के बाद कुछ जूद भी देने लगती है 1 घgतरी अपने मुनाफ़े का कुछ संवा भी देती हैं। औरों में अन्य प्रकार के लाभ दिललाये जाने हैं। पर जांच और हिसाब करने पर प्रत्यक्ष ज्ञात होजायगा कि बीमा करने वाले को सदा हानि ही की संभावना अधिक रहत. हैं । और ऐसा तो होना चाहिए। क्योंकि कम्पनियां धीमे का काम व्यवसाय के तौर पर करती हैं, क्रिसी पर कुछ एहसान करने या किसी की मदद पहुँचाने के इरादे से नहीं । अतः मैं अयश्य ही अपने लाभ की तरफ ध्यान रखेंगी । जो कम्पनियां आपको अपना हिस्सेदार नाचेंगी उन में भी जांच से कुछ ऐसे ही पॅच निकलेंगे जिनके कारगर उनके वास्तविक संचालकों को कुछ न कुछ फ़ायदा ज़रूर होता होगा। इससे सब बातों को खूब सोच विचार कर बीमा कराना चाहिए । | हमारी समझ में (१) केवल उन्हीं लोगों को धीमा कराना चाहिए जिनको बुढ़ापे में स्वयं उनके अथवा अकाल मृत्यु होजाने से उनके बाल-बच्चों के भूख मरने का ज़टका हो । उन्हें भी केवल उतने रुपये का बीमा कराना चाहिए जितना भरण-पोपण के लिए आवइयक हो ।(२) तमाम उम्रयाले की अपेक्षा