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सम्पत्ति-शास्त्र।

इल, सैकड़ चारपाइयां और बहुत से कपड़े तैयार हो सकते हैं। अतएवं यदि मैं वे सच चोर्जे माल लै भी लू तो भी उनका यथेष्ट उपग न कर सफ } जितना पिया मुझे औजार आदि खरीदने में खर्च करना पड़ेगा उतने में मैं कई इल, कई चारपाइयों और कई औड़े धेतियां खरीद कर सकता । इससे, बेहतर यही है कि जो छुद्दार हुल बनाता है वह् हुल बनाने ही का व्यवसाय करें ; जेा बढ़ई चारपाइयां बनाता है वह रिपाइयां ही बनावे; और जो जुलाहा घेतो जाड़े तैयार करता है वह वही काम करे । मैं भी अपना किसानी ही का काम करता रहूंगा और जब जज इस लेगी को बनाई हुई चीजें दरकार होंगी तब तब उनसे माल के लिया करूगा । इससे सिद्ध है कि जो हल बनाता है उसे हल बनाने ही मैं फ़ायदा है; जे चारपाइयां बनाता है। उसे उसी में फ़ायदा है, और कपड़े तैयार करता हैं उसे भी उसी में फायदा है । जी जिस चीज़ की बनाता या उत्पन्न करता है वह और चीजें उनके बदले में प्राप्त करके अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है। इसी में समाज का कल्याण है; इसी में हर आदमों का भी कल्याण है। मनुष्य जैसे जैसे अधिक सक्कन, सभ्य और सुशिक्षित होता जाता हैं पैसेहो भैसें चइ इस अदला-बदल के श्यापार के नहाकर फ़ायदा उठाता है । अफ़रीका के जगढ़ी आदभियों के देखिए । वे अब तक असभ्य अवस्था में हैं। वे अपने खेत अापही जानते हैं, अपने इल, फाल भी अपि ही बनाते हैं , अपने तीर, कमरभ भी आप ही बनाते हैं, और रहने के लिए झापड़ियां भी आप ही तैयार करते हैं । वे बातें उनकी असभ्यता की सूचक हैं। इससे उन्हें अनेक कष्ट मलै पड़ते हैं। इससे उनकी सामाजिक उन्नप्ति में बड़ी बाधा आती हैं। इससे ही उन्हें दारिद्र भाग करना पड़ता है। जहां सब लोग अपने सारे काम अपि ही करते हैं वहां क्लब की काम बिगड़ता है। केई किसी काम को अच्छी तरह नहीं कर सकता। जिस तरह हम लोग एक गाँव या एक शहर में, अब अस पास के गाध और शहरों में, अपनी बनाई हुई चीजें देकर, ज़रूरत के अनुसार, दूसरों की बनाई हुई चीजें लेते हैं, उसी तरह अपनी चीज़ों के बदले सुदूर चर्सी प्रान्तों से भी हम अावश्यक चीजें प्राप्त करते हैं। हिन्दुस्तान में कहीं गेहु बहुत पैदा होता है, कहीं चावल । कहीं रुई अधिक होती है, कई शकर। अतएव जा चीज़ जिस प्रान्त मैं अधिक होती है वह उसी प्रान्त से