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सम्पत्ति-शास्त्र।

फ़ायदा होने से दूसरे का नुक़सान होना ही चाहिए। एक थदि धनवान् है। जायगा तो दूसरा जरूर ही लुट जायगा | व्यापार से देने का फ़ायदा एकही साथ नहीं हो सकती । व्यापार कैाई ऐसी चीज़ नहीं जिससे फाई चोज़ नई पैदा हो सकता है । यह केवल रुपया कमाने या औरों को लूटने की एक कु जी हैं। | इस तरह का प्रक्षेप मिमूल ई-सर्घथा भ्रमात्मक है। व्यापार से यद्यपि नई चीजें नहीं पैदा होतीं, तथापि उन में एक प्रकार की विशेषता ज़रूर जाती है। उनके गुणों की वृद्धि ज़रूर होजाता है। सच लोगों को काम चीजें नहीं दरकार हो । कल्पना कीजिए कि किसी के पास कई लोटे हैं; उन सच की उसे ज़रूरत नहीं । दूसरे के पास दस थान मरिकीन के हैं, परन्तु उस समय उसके पास पहनने औढ़ने के लिए काफ़ी कप-कते हैं । इस लिए चह' मारकीन उसे दरकार नहीं ! अब यदि लौटे चाले को मार कोन दरकार हो और मारकीने वाले को लोरे, तो दोनों को अपनी अपनी चीज़ का अदला-बदल करना चाहिए। इस तरह के अदला-बदल से लौटे पौर मारकीन, दोनों चीजें, उपयोग में अज्ञायेंगी । इस से एकही को फायदा न पहुँचेगा, दोनों को पहुंचेगा। दोनों की जरूरत फ़ा होगा । ऐसा कदापि न होगा कि इस अदला-बदल से एक का फ़ायदा हो, दूसरे का नुक़सान । यदि दो में से किसी के भी नुकसान को संभावना होगी तो अदला-बदल होगा नहीं। | कौई कोई चीजें ऐसी हैं जो किसी विशेष स्थल में सम्पत्ति नहीं कही। जा सकन । पर वही चीजें, किसी दूसरी जगह पहुँचाने से सम्पत्ति हो • जाती हैं । इसी तरह कोई कोई चीजें किसी मनुष्य के पास रहने से उनकी गिनती सम्पत्ति में नहीं होसकती, परन्तु दृसरे के पास जाते ही उन्हें सम्पत्ति का रूप प्राप्त होजाता है। व्यापार से नई चीजें नहीं पैदा होती, परन्तु एक जगह में दृसरी जगह, अथवा एक आदमी के पास से दूसरे के पास, जाने से उन में एक प्रकार की उपयुक्तता एक प्रकार का उपयोगीपन-ज़रूर अज्ञाता है । अतएव सम्पत्ति की वृद्धि के लिए व्यापार एक बहुत बड़ा साधन है । कथं से जंगली आदमियों के बहुत ही कम काम निकलते हैं । पर उसी कत्थे को बाज़ार में लाकर जब चे अनाज से बदल लेते हैं तब उस फी उपयोगोपन बढ़ जाता है-उसके सम्पतिक गुण की वृद्धि हो जाती