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सम्पत्ति-शास्त्र।

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प्राप्त हुआ अनाज देकर जे कैयला हिन्दुस्तान ने इंगलैंड से लिया, उसे तैयार करने में इंगलैंड का यद्यपि अधिक मृर्च हुअा, तथापि वह हिन्दुस्तान को तीनही महीने की मेहनत से पैदा हुए अनाज के बदले मिला । अतएध यही कोयला न निकाल कर इंगलैंड से उसे मंगाने में हिन्दुस्तान की कोई हानि न हुई । हर उसे फ़ायदा ज़रूर कुछ न हुआ । तथापि इस व्यापार से इगलंद की जरूर फ़थिदा हुअ- अतएघ इस स्थिति में व्यापार जारी ही सकेगा और हिन्दुस्तान में इंगलैंड की अपेक्षा कम लागत में तैयार होने पर भी कोयला इंगलैंड से मँगाया जा सकेगा।

इस उदाहरण के अनुसार स्थिति होने से हिन्दुस्तान की कुछ भी लाभ न होगा । परन्तु व्यापार शुरू होने पर सारा लाभ एकही देश का नहीं है। सकता, क्योंकि यदि ऐसा होगा तो दूसरा देश क्यों व्यर्थ में व्यापार करने का झंझट उठावैगा । उसे भी थोड़ा बहुत लाभ जरूरहो होना चाहिए | तभी व्यापार जारी होगा। पूर्वोक्त उदाहरण में यह दिखाया गया है कि हिन्दुस्तान के केायला भेज कर उसके बदलें अनाज लेने में इंगलैंड की एक महीने की मेहनत 'बचती है । अर्थात् उसे मार्गो इतना लाभ होता है । अब यदि गलैंड' इस लाभ का कुछ अंश हिन्दुस्तान के देने पर राज़ी है। जागा है। हिन्दुस्तान उसके साथ व्यापार जारी रखना स्वीकार कर लेगा, अन्यथा नहीं। जब तक दो देशों के माल के मूल्य का परिमाण बराबर होता है तब तक व्यापार जारी नहीं होता। परन्तु उनमें अन्तर पड़ते ही जारी छौ जाता है। यह पूर्वोक्त विवेचन से स्पष्ट हुआ ! अब यह देखना है कि यह अन्तर-यह फ़रक़-कितना होना चाहिए । भिन्न भिन्न दो देशों में तैयार होने वाले माल में जो लागत लगती है, जो मज़दूरी देनी पड़ती है, या जो समय ख़र्च होता है उसको अन्तर कितना हो जो व्यापार जारी हो सके। इसका उत्तर यह है कि एक देश से दूसरे देश के माल भेजने या वहां से मॅगाने में आने जाने का जो खर्च पड़ता हैं उसे निकाल कर कुछ मुनाफ़ा रहना चाहिए । अर्थात् अदला-बदल के माल के परिमाण में इतना फ़ होना चाहिए कि आने जाने का खर्च भी निकल आचे और कुछ बच भी जाय । पुबॉक्त उदाहरण में यह कल्पना कीजिए कि कोयले और अनाज की आमदनी और रफ्तनी में जो खर्च पड़ता है वह एक हफ्ते की मज़दूरी के बराबर है। हिन्दुस्तान में जितना धान्य तीन महीने में तैयार