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विदेशी व्यापार।

होना है उतना ईगलैंड में चार महीने में होता है । इन चार महीने में एक हएतर मजदूरों के बचे का ज्ञौड़ कर कुछ दिन और मुनाफ़े के भी जोड़ने चाहिए । अर्थात् उतना घन्यि पैदा करने के लिए ईगलड़ के सघा चार मदीने में कुछ अधिक लगनी चाहिए। ऐसा होने से कोयले और अनाज हा वदला करने में हिन्दुस्तान को भी लाभ होगा और ६ गड को भी । यही बात सब देशों के पारस्परिक व्यापार के सम्बन्ध में कही जा सकती है। जिस देश में जो चीज़ तैयार करने में अधिक दुभीता है अरे उसे तैयार करना चाहिए । तभी माल अधिक तैयार हो और तभी मेहनत और पूंजी का सदुपयोग भी होगा ! इसी तरह जो चीज़ जिस देश में अच्छी बनती हो वहीं बनाने से उसके व्यवसाय की उन्नति होगी, क्योंकि उसे अधिक अच्छी बनाने की नई नई तरकीचे लोगों के सुग्री ? इस से उत्पत्ति का बर्च कम हो जायेगा और चीज़ कम लागत में तैयार होने लगेगी । हिन्दुस्तान में यदि अनाज आड़े बने में अधिक पैदा हो सकता हो, ते अनाज पदा करना चाहिए । इंगलैंड में लोहे का सामान यदि और देशों से अच्छा और कम भ्वच में तैयार हो सकता हो तो उसे उसी का व्यवसाय करना चाहिए ऐसा करने से दोनों देशों को फायदा होगा। | यदि किसी देश में एकत्रिक चीजें नयार होती हैं और उनमें से एक सस्ती आर दूसरी महंगी पड़ती हो तो समझना चाहिए कि एक की उत्पत्ति का स्वचं दूसरी की उत्पतिं के चं से अधिक है। परन्तु विदेश व्यापार के सम्बन्ध में एक बात यह भी याद रग्त्रनी चाहिए कि सब चीज़ों का मूल्य सिर्फ उनके उत्पादन-व्यय के ही ऊपर अपलभ्यत नहीं रहता । कभी कभी आर बाने भी उनके मूल्य के घटाने घढ़ाने में कारगीभूत होती हैं । बंबई और कानपुर में कपड़े बनाने के कितने ही कारग्ब्राने हैं। पर यहाँ विशेष करके माटो ही कपड़ा तैयार होता हैं, चारीक नहीं । इसका कारण यह नहीं कि इन कारग्वानों में बारीक कपड़ा बन ही नहीं सकता ! नहीं, चन तो सकता है, पर उसे बना कर बेचने में कारवानेदारों का मुनाफ़ा कम मिलता है। और कम मुनाफे से उन्हें सन्तोष नहीं होता । परन्तु इंगलैंड के कारल्लाने के मालिक थेाड़े ही मुनाफे पर सन्तोष करते हैं। इसी से महीन कपड़ा विशेस करके ईगले ही से हिन्दुस्तान में आता है।