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सम्पत्ति-शास्त्र

स्वेप में उसे पाँच गठरी मुनाफ़ा होगा 1 परन्तु, जैसा ऊपर कहा जा चुका है, इस दशा में व्यापार कभी जारी न होगा । यह नहीं हो सकता कि सारा मुना एक ही देश ले अाथ, दूसरे की कुछ न मिले । अतएघ हज़ार मन अनाज की कीमत न पन्द्रह ही गठरी कपड़े हो और न बीस ही गठरी । यदि वह इन दोनों के दरमियान में होगी तभी व्यापार हो । मान लीजिए कि यह दरमियानी भाच अट्ठारह हो गया । ऐसा होने से पन्द्रह गठरी की अपेक्षा तन गरी कपड़ा हुर हज़ार मन पीछे हिन्दुस्तान की बता' मुनाफ़े के मिलने लगेगा। इंगलैड के इजर मन अनाज पैदा करने के लिये बीस गठरी कपड़े की क़ीमत के बराबर अनुचे फड़ता है। पर अध उतना धान्य अट्ठारह ही गठरी कपड़ा देने से मिलेगा । अतएव गलैंड की भी हुर हज़ार मन अनाज्ञ, अथचा हर अट्ठारह गठरी कपड़े, के पीछे दैा गठ्ठो कपड़े की बचत होगी । अर्थात् पाँच गठरी कपड़े का मुनाफ़ा दोनें। देश में बँट जायगा, तीन गठरी हिन्दुस्तान के मिलेगा, दे। गलैंड केर । परन्तु अब विचार इस बात की करना है कि अट्ठारह गरी कपड़े का भाव मुकर्रर किस तरह होगा ? सन्नहीं था उन्नीस गठरी को क्यों न हो ? और । भाव मुक्रर होगी चह किन किन नियम के अनुसार ही है। पुर्वक्ति प्रक्षों का उत्तर वही पूर्व-परिचित आमदनी और खप का समकरण है । है। देश में पैदा या तैयार होने वाली चीज़ों के परस्पर अदलाबदल होने का भाव, उन चीज़ों का जैसी खेप और जैसी अमदनी होगी उसी के अनुसार निश्चित होगा । हज़ार मन अनाज के बदले अट्ठारह मठरी कपड़ा मिलने का भाव है। मान लीजिए कि इंगलैंड में जितने अनाज का खप है उतना हिन्दुस्तान में है, और हिन्दुस्तान में जितने कपड़े को खप है उतना ग% में हैं । अर्थात् आमदनी और खप में तुल्यता है—उनका समीकरण हैं। तब हज़ार' मन अनाज के बदले अट्ठारह गठरी कपड़े का भाव नियत हुआ है। | अव कल्पना कीजिए कि हिन्दुस्तान में एक हजार गठरी कपड़े का रखप है, तब पूर्वोक्त भाई से ( अट्ठारह गठरी कपड़े के बदले हजार भन ) अनाज हिन्दुस्तान के देना पड़ता है। पर, मान लीजिए, कि इतने अनाज की ज़रूरत इंग्लैंड की नहीं है । हर दस गठरी पीछे अट्ठारह सौ मन के हिसाब से नौ सौ गठरी कपड़े का जितना अनाश मिलेगी उतना ही उसके लिए