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सम्पत्ति का स्वरूप


और कपड़े प्राप्त करता है।इसी तरह हर अदामी को, व्यावहारिक चीज़ों का अभाव दूर करने के लिए,परस्पर एक दूसरे की सहायता दरकार होती है-एक दूसरे को अपनी अपनी चीज़ों को विनिमय अर्थात बदला करना पड़ता है। इन्हीं विनिमय-साध्य वस्तु का नाम सम्पत्ति है। जिन चीजें के बदले कोई और चोजें नहीं मिलतीं उनकी गिनती सम्पत्ति में नहीं।

संसार में सम्पत्ति की बड़ी महिमा है । विमा सम्पत्ति के किसी का गुज़र नहीं।सायङ्काल,कानपुर में,इस खास सड़कों पर घूमने जाइए।आप देखिएगा अच्छे अच्छे कपड़े पहने हुए लोग घूम रहे हैं।फ़िटन,टमटम,ट्राम,मोटर और पैर-गाड़ियाँ दौड़ रही हैं।बड़ी बड़ी दुकानों और कोठियां में लाने रुपये का माल भरा हुआ है। ऊंचे-ऊंचे मकान" खड़े हैं।जगह जगह शिवालय और ठाकुरद्वारे बने हुए हैं। शहर के भीतरबाहर कितनेहीं कल-कारखाने जारी हैं।जहाँ देखिए व सु-समृद्धि के चिन्ह दिखाई देने हैं।पर कानपुर के पास ही किसी गाँव में जाए।न गाड़ियाँ हैं,न छोड़े हैं, न ई सी दुकाने, म अझछ मफाम हैं । जहाँ देखिए उदासी सी छाई हुई हैं। इस अन्तर का कारण प्या है ? कारण इसका बही सम्पत्ति हैं और कुछ नहीं। जहाँ समाप्त है घद्दों समृद्धि और शेभा; जहाँ सम्पत्ति नहीं है वहीं दरिद्र और उदासीनता

विनिमय-साध्य व्यावहारिक चीज़ों ही का नाम सम्पत्ति है। इन्हीं की अधिकता से कानपुर समृद्धिशाली हो रहा है और इन्हीं की कमी ने गवां को दरिद्रता में डुबा दिया है। अथवा यी फहिए कि इन्हीं चीज़ों की प्रचुरता से आदमी धनी हो जाता है और इन्हों की कमी से कङ्गाल । विनिमय-सभ्य व्यावहारिक चीज़ों का विशेप गुग्ण मूल्यवान देना है। यदि चे मूल्यवान् नहो–यदि उनको कुछ भी क़ीमत नहीं है। वे विनिमयसाध्य नहीं । ऐसी चीज़ के बदले दूसरी चीजें नहीं मिल सकीं। जिन चीज़ों के प्राप्त करने में परिश्रम और प्रयास पड़ता है वहीं मूल्यवान् समझी जाती हैं। जो चीजें बिना प्रयास और बिना परिश्रम के यथेष्ट मिल सकती हैं उन्हें कोई कीमत देकर नहीं लेता। क्योंकि प्रचुर परिमाण में पड़ी मिलने के कारण वे बे-मेल हो जाती हैं। चीजों के मूल्यवान् होने से यह मतलब है कि उनमें एक विशेप गुण आ जाता है। इस गुण की बदलत ऐसी चीज़ों के मालिक का यह अधिकार मिल जाता है कि यदि वह वे