पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३०२

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विदेशी यात और आयात माल की कमी-वैशी का परिणाम । २८३ चौथी परिच्छेद । बिदेशी यात और अायात माल की कमी-बेश का पारणाम । | माह विदेश को जाता है उसे यात और जे विदेश से आता है उसे आयात कहते हैं । इस परिच्छेद में उनको कमी-वशी के परिणामों का चिंचार करना है। सम्पत्ति-शास्त्र पर पहला ग्रन्थ लिखनेवाले ऐडम स्मिथ का यह मत था कि जैा माल अपने देश में नहीं खपता चहू विदेश से व्यापार करने में भार और देशों में वप जाता है और उसके तैयार करने में लगी हुई पूजी मुनाफे सहित वसूल हे जाती है। परन्तु यह मत भ्रामक है। क्योंकि किसी माल । के जितने अंदा की जरूरत किसी देश के नहीं, उसे चइ तैयार श्यों करेगा ? किसी देश पर कोई ज़बरदस्ती है। करता ही नहीं कि तुम अपने मतलब से ज़ियादह माल तैयार फ और फिर उसे पाने के लिए बिधेश का मुंह देखने वैज्ञो । फिर, फालतू माल तैयार करने की क्या ज़रूरत ? येडम स्मिथ के कथन से ना यह मतलब निकलता है कि यदि फालन माल का स्वप विदेश में न होगा तो वह वरवाद हो जायगा, अथवा मतलब से अधिक माल कोई तैयार ही न करेगा । अतएव जी का चहुत सा अंश बेकार पड़ा रहेगा और कितनेहीं मजदूरों की भून्नों मरना पड़ेगा । परन्तु यह वात ठीक नहीं । कैाई देश लाचार' हो कर फालतू, भाल नहीं तैयार करता ; केाई किसी देश पर अधिक माल तैयार करने के लिए ज़बरदस्ती नहीं करता । अच्छा तो फिर फालतू माल क्यों तैयार किया जाता है ? इसका उत्तर यह है कि मुसरे देशों में बहुत सी चीज़ ऐसी तैयार होती हैं जो अपने देश में सस्ती नहीं मिलती--अर्थात् उन्हें तैयार करने में लगते अधिक लगती है। अन्य देशों में तैयार हुई सस्तो चीज़ों के बदले में देने के लिए ही फालतू माल तयार किया जाता है ! यदि यह फालतू, माल न उत्पन्न किया जायगा हैं। बाहर से आने वाली चीज़ों का बदला देने के लिए पास फालन, माल न होने से उनका अनी भी चन्द हो जायगा । पर उन चीजों फी है अपने देश की जरूरत । विना उनके काम ही नहीं चल सकता। इस से उन्हें तैयार करने की योजना अपने ही देश में करनी होगी। ऐसा फरने से, फालतू माल पैदा करना बन्द हो जाने पर, बची हुई पूंजी और