पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३०६

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घिदेशी यात और आयात माल का कमी-बेशी का परिणाम । २८७ की गिनती सम्पत्ति में है। अतपय सेना-चाँदी आई ते फ्या, और दूसरा माल या ना फ्या' । चात एकही हुई । अर्थात् जितने का यात मार धाहर गया उतनैहों का आयात माल बाहर से आया । दैनी और पाघना वरावर देर गचा । न हानि ही हुई, म लाभ ही हुआ । कपड़े, केयले अंगर लोहे आदि ६ जगह साना-चाँदी थी ! वस, अन्तर इतना हुआ । इसमें यह समझना भूल है कि वीस लाख रुपये नक़द आने से देश अधिक सम्पत्ति-शाली ही गया, यदि उतनी क़ीमत का माल आता ने देश की इतनै अंश में हानि पहुँचती । अच्छा, अपने देश में बाहर के माल की आमदनी रोक कर उसके बदले पण पैसा लेने से क्या परिणाम हेागी ? ऐसा करने से या देश अधिक सम्पत्ति-शरली हे। जायगा १ अपने देश की चीज़ बाहर भेज कर उसके बदले रूपया पैसा प्राप्त हुआ । इसका सिर्फ यही मतलब हुआ कि देश में सम्पत्ति ‘जा गफ दूप में थी उसका दूपान्तर हो गया। अर्थात् अन्य वस्तुरूपी सम्पत्ति के रूप में की मूप प्राप्त हो गया ! जितनी सम्पत्ति चाहर गई थी उतनी हों अन्य रूप में बाहर से गई: कुछ अधिक नहीं आई। इससे स्पष्ट है फि अपना देश पहले की अपेक्षा अधिक सम्पत्तिमान् हरगिज़ नहीं हुई। हां, इंश में रुपया पैसर अधिक है। जाने से कुछ विलक्षण फेरफार फर हॉगे। इस फेरफार के सम्बन्ध में थोड़ा सा चिवैचन दृरफार है। | कल्पना कीजिए कि हिन्दुस्तान ने एक फरोड़ का माल इगलंड के भेजा। उसके बदले उसे गलंड से अस्सी लाख का ता माल मिला; बाक़ी बीस लाख रुपये नक़द मिलै । हिन्दुस्तान में बीस लाख रुपये अधिक हो जाने से *पयां का संग्रह बढ़ गया । संग्रह अधिक है। जाने से रुपयों की क़ीमत कम दी गई । जिस चीज़ की क़ीमत पहले एक रुपया थी उसकी अब सची रुपया हो गई । अर्थात् सब चीज़' महँगी बिकने लगीं । रुपया अधिक होने से देश अधिक धनधान् ता हुआ नहीं, उलटा व्यवहार की चीज़ों की क़ीमत अधिक हो गई । चीज़' महँगी विकने से उनका खप कम हो जाता है । यह सध-व्यापक सिद्धान्त है। हिन्दुस्तान में माल महंगा बिकने से इंगलैंड में उसका जप कम है। जाय । परन्तु इंगड़ में इसका उलटा परिणाम हैगरे । वहां रुपये का जितना संग्रह था उसमें बीस लाख की कमी हो जाने से हारिक पदार्थ सस्ते विकनै लगगे । फल यह होगा कि उनका खप वढू