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सम्पत्ति-शास्त्र।
जायगा । हिन्दुस्तान में भी है।ने से उसकी चोज़ का खप कम है। जाय। और गले में चीज़' सस्ती बिकने से इनका खप अधिक ईराने लगेगा । जिस देश के मई , का खप कम होता है उसे व्यापार में न होती है। और जिसके माल का खप अधिक होता है उसे लाभ होता है। सम्पत्ति शास्त्र के सिद्धान्तों के अनुसार यह बात निर्विचाद है । अतएच हिन्दुस्तान फेर हानि और इंगलैंड कै लाभ होगा ! हिन्दुस्तान में माल के बदले रुपया आने से, देखिए, कितना अहितकारक परिधाम हुा । अतएव जो लोग यह समझते हैं कि माल के बदले रूपया अधिक आने से देश के लाभ पहुँचता है ये सम्पत्ति-शास्त्र के सिद्धान्तों से बिलकुलही अनभिज्ञ हैं।

हिन्दुस्तान में माल के बदले रुपया आने से एक और अनिकारक परि शाम हेाग्न । हिन्दुस्तान में चीज़' महँगी और ईंगलंड में सस्ती हैाने से ईंगलैंड के माल का खप हिन्दुस्तान में बढ़ने लगेगा और हिन्दुस्तान के माल की रपतनी कम होती जायगी। अर्थात् हिन्दुस्तान के यात माल की मात्रा कम हेति जायगी और आयात की बढ़ती ज्ञहथगी । इस तरह हैाते हैते किंसी दिन यात र आयात माल बरावर ही जायगा ! अर्थात् कम सरल लेकर इंग्लैंड के बीस लाख रुपये का देनदार बना रखने का इरादा जी हिन्दुस्तान का था वह पूरी न हो सकेगा। दो देशों में व्यापार शुरू होने से कभी न कभी यति और अयात माल में तुल्यता ज़रूर है। जायगी । ऐसे व्यापार में समता का होना स्वाभाचिक वास हैं । कोई देश अयात माल की आमदनी के रोक कर यदि यात माल अभ्रिफ भेजने का यत्न करेग्म तैा उसकी यह युक्ति बहुत दिन तक न चल सकेगी । तराज़ के पलों की तरह ऊपर नीचे है। कर कुछ दिनों बाद यात और आयात माल में ज़रूर ही समता स्थापित हो जायगी । जब तक असमता की अवस्था रहेगी तब तक एफ देश कै फायदा और दूसरे के नुक़सान होता रहेगा । कब किसे फ़ायदा होगा और कच नुक़सान, इस धातु का विचार पहले ही किया जा चुका है। अर्थात् देश से बाहर जानेवाले की अपेक्षा बाहर से देश में आनेचाळा माल यदि कम होगा तो नुक़सान, र यदि अधिक है।गा तो फ़ायदा होगा। हिन्दुस्तान के विदेशी व्यापार के सम्बन्ध में कुछ विशेषता है । यह विपता राजकीय कारणों से उत्पन्न हुई है। हिन्दुस्तान पराधीन देश है। थों का राज्य-सूत्र अँगरेजों के हाथ में है। उसके प्रधान सूत्रधार गलैंड