पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३०८

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विदेशी यात और आयात माल को कमी-वेशो का परिणाम १ २८९ में रहते हैं। उनके ओहदे का नाम है सेक्रेटरी आच स्टेट । उनका इतर लन्दन में हैं और वहीं उनके सलाहकारों की एक समा भी है। इन सब को सलाह अदि हिन्दुस्तान के झिम्मे है । हिन्दुस्तान में जो हज़ारों अँगरेज़ अफसर काम करते हैं वे पेन्शन लेकर जब इंगलैंड जाते हैं तब पेन्शन भी उनको यहीं से हो जाती है। यहां के लिए बहुत सी फ़ौज भो इंगलंड की भैजनीं पड़ता है। हिन्दुस्तान की रक्षा के लिए जहाज़ भी रखने पड़ते हैं। सरकार के न मालूम कितनी चोजें राजकीय कामों में खर्च करने के लिए विलायत से मँगानी पड़ती हैं। रेल अदि बनाने के लिए गयर्नमेंट ने बहुत सा रुपया विलायती महाजनेई से क़र्ज़ लिया है, उसका सूद भी देना पड़ता है । इस सब ख़र्चे का सालाना टोटल केाई ३० करोड़ एयर होता हैं ! वह सब हिन्दुस्तान से लिया जाता है । इसे एक प्रकार का 'कर' समझना चाहिए । अँगरेज़ी में इस 'कर' का नाम है 'होम वाज़' ( EIorne Charges)। इतना भारी कर हर साल देने से हिन्दुस्तान की कितनी सम्पत्ति इंगलड़ चली जाती है, और इस सम्पत्ति-धारा के सतत प्रवाह के कारण हिन्दुस्तान की सम्पत्तिक अवस्था कितनी हीन होती जाती है, इस का विचार हमें यहां पर नहीं करना है। धिम्यार हमें इस बात का करना है कि यह चौस करोड़ रुपया हर साल गलैंड के. भैज्ञा किस तरह जाता है और इसके कारण हिन्दुस्तान बैर ६ गलैंड के व्यापार पर कितना असर पड़ता है। देखना यह है कि यह 'हेम चार्जेज़' रूप फर देने पर इन दोनों देशों के व्यापार में तुल्यता रहती है या नहीं, और नहीं रहतीं, तो कितनी विषमता रहती है और उसका मतलब क्या है। हिन्दुस्तान के व्यापार पर गवर्नमंट हर साल एक पुस्तक प्रकाशित करती है। इस पुस्तक में सब तरह की यात और अयात घस्तुओं का लेना रहता है। इस कैखें की एक समालोचना भी प्रकाशित होती हैं। इस समालोचना में यात और आयात माल की कमी-वैशी और उसके कारण आदि की विवेचना रहती हैं। १९०५-०६ ईसधी के लेने की जो समाछौचना गवर्नमेंट नै प्रकाशित की है उस से हम भारतवर्ष के तीन वर्ष के यातायात व्यापार को स्थूल जैस्वा नीचे देते हैं: १९०३-६४ । १९०४-०५ ।। | १९०५-०६ अत १,६१,१८,१९,५५२ १,६५,४७,७१ ६०६ १,६८,१५,७८,४५८ आयात १,१६,७६,६५,५५१] १,२९,७०,५८,५८२ | १,२३,९८,७१.७१६ १० ४४,३४,२४,००१ | ३५,७७,१३,४१८ | ४४,१७,०६,७८३