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माल के मूल्य का विनिमय।

नकद रुपया इँगलैंड नही भेजते। वे इंगलैंड के व्यापारियों को माल भेजते हैं और कह देते हैं कि उस माल की क़ीमत तुम सेक्रेटरी आव् स्टेट को दे दो। तदनुसार वे रुपया दे देते हैं और सेक्रेटरी आव् स्टेट की भरपाई हिन्दुस्तान के व्यापारियों को भेज देते है! यदि उतना रुपया देने के बाद कुछ बच रहता है तो उसका माल रवाना कर देते हैं। इस से स्पष्ट है कि हिन्दुस्तान से भेजे गये माल के बदले इँगलैंड से २० करोड़ का माल कम पाता है। अब ऊपर जो लेखा दिया गया है उसमें और देशों से आये हुए माल के साथ इँगलैंड से आया हुआ आयात माल भी शामिल है। पूरे आयात माल की कीमत में इन २० करोड़ रुपयों को जोड़ देने से हिन्दुस्तान के वात और आयात माल का टोटल बराबर हो जाना चाहिए था। परन्तु ऐसा नहीं हुआ। अर्थात् आयात माल की कीमत में फिर भी २४ करोड़ की कमी रही। यह कमी किसी साल कम हो जाती है, किसी साल जियादह। पर रहती हर साल है। व्यापार की दृष्टि से हिन्दुस्तान के लिए यह बात बहुत हानिकारी है। यदि इस देश के हाथ में यह बात होती तो किसी किसी माल पर कर लगा कर उसकी आमदनी या रफ्त़नी का प्रतिबन्ध कर दिया जाता। इस से धीरे धीरे हिन्दुस्तान के व्यापार में समता हो जाती। परन्तु ऐसा नहीं है, इसीसे इस देश के विदेशी व्यापार में इतनी अस्वाभाविकता है।


पाँचवा परिच्छेद।
माल के मूल्य का विनिमय।

बड़े बड़े व्यापारी जो माल ख़रीदते हैं उसका मूल्य बहुधा नक्‌द रुपया देकर, नहीं चुकाते। ख़रीद किये गये माल के बदले वे या तो और कोई माल दे देते हैं, पर उसकी कीमत हुंडी से चुकाते हैं। इसका उल्लेख एक परिच्छेद में पहले हो चुका है। इस परिच्छेद में इसके सम्बन्ध की कुछ विशेष बातें और कहनी हैं। ऐसा करने में यदि कहीं पर पुनरुक्ति भी हो जाय तो हानि नहीं, बात अच्छी तरह समझ में आजानी चाहिए।

कल्पना कीजिए कि दो आदमी कानपुर के रेलवे स्टेशन से ट्रामवे में सवार हुए। दोनों को गंगा के किनारे, सरसैया घाट, जाना है। ट्रामवे