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सम्पत्ति-शास्त्र।

का किराया, स्टेशन से घाट तक, एक आदमी पीछे दो आदमी हैं। जो दो आदमी ट्रामवे में सवार हुए उनमें से एक के पास सिर्फ एक चवन्नी है। उसने वह चवन्नी ट्रामवे के "कांडक्टर" को देदी। "कांडक्टर" को लेना चाहिए सिर्फ़ दो आने; परन्तु मिले उसे चार आने। अतएव दो आने उसे उस मुसाफ़िर को देने रहे। उसने वे दो आने उसे न देकर दूसरे मुसाफ़िर से कहा कि ये दो आने हम आप के किराये में मुजरा किये लेते हैं। आप दो आने अपने साथी को दे दीजिएगा। उसने इस बात को मंजूर कर लिया। फल यह हुआ कि कांडक्टर" ने पहले मुसाफ़िर का ऋणा भी चुका दिया और दूसरे से किराया भी वसूल कर लिया। यह एक प्रकार का विनिमय हुआ। व्यापार में देना-पावना यदि इस तरह चुकता किया जाता है तो वह मूल्य का विनिमय कहलाता है। इस विनिमय से हमारा मतलब "Exchange" से है। अँगरेज़ी शब्द "यक्सचेंज" (Exchange) से जो मतलब निकलता है, "मूल्य-विनिमय" से वही मतलब समझिए। इस प्रकार मूल्य लेने या देने वाले व्यापारी जब एक ही स्थान में होते हैं, अथवा एकही देश के जुदा जुदा स्थानों में होते हैं, तब उनका यह व्यवहार अन्तर्विनिमय (Internal Exchange) कहलाता है। और जब ये जुदे जुदे देशों में होते हैं तब बहिर्विनिमय (Foreign Exchange) के नाम से बोला जाता है। इस विनिमय के विषय को महाजनी हिन्दी में भुगतान या हुँडियावन कह सकते हैं। अथवा माल के मोल का भुगतान कहने से भी सब तरह के व्यापारी और व्यवसायी आदमी इसका मतलब समझ सकते हैं।

इँगलैंड से कपड़ा हिन्दुस्तान आता है और हिन्दुस्तान से गेहूं इँगलैंड जाता है। सम्पतिशास्त्र के पारिभाषिक शब्दों में जब यह बात कही जायगी तब इस तरह कही जायगी कि कपड़े और गेहूं का बदला होता है। परन्तु यह बदला, प्रत्यक्ष बदला नहीं। यह नहीं होता कि गेहूं पैदा करने वाले किसान खु़दही गेहूं इँग़लैंड भेजते हों और उसके बदले कपड़ा वहां से मँगाते हों। यह बदला व्यापारियों के द्वारा परोक्ष रीति से होता है। व्यापारी ही गेहूं खरीद कर इँगलैंड भेजते हैं और यही वहां से कपड़ा मँगाते हैं। इस क्रय-विक्रय के निमित्त रुपया नहीं भेजना पड़ता; हुंडी-पुरजे़ से ही काम लिया जाता है। जितने देश हैं प्रायः सब के सिक्के