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सम्पत्ति-शास्त्र।

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का सिक्का है और हिन्दुस्तान में चांदी का। इसी झंझट को दूर करने के लिए इस समय गवर्नमंट ने यहां के एक रुपये का इंगलैंड के १६ पैस के खराबर मान लिया है । दे देशों के सिक्कों के विनिमय का भाव बतलाने के लिए एक देश के सिक्के को क़ीमत स्थिर रख कर दूसरे देश के सिकें की क़ीमत की कमरे-धेशी का हिसाब लगाया जाता है । हिन्दुस्तान और इंगलैंड के विनिमय का तारतम्य निश्चित करने में हिन्दुस्तान के रुपये की स्थिर रख कर यह देखा जाता है कि उसके बदले गलद्ध के कितने पेन्स मिलते हैं। तदनुसार मूल्य-चिनिमय का भाव निश्चित होता है । इँगलंड में झांझ नामक धातु का भी पैन्स चलता है। परन्तु यहां पर उससे मतलब नहीं है। यहां पर सोने के पौंड नामक सिक्के के २४० भागों में से एक भाग के सूचक सिके से मतलवं है। वहीं एक भाग यहां पैन्स समझ गया है।

व्यापार-सम्बन्धी मूल्य-विनिमय का प्रधान उद्देश यह है कि धातु के सिके न भेजने पड़े , पर मोल लिये गये माल की कोमत चुकता होजाय । इस प्रणाली का आभास डाक द्वारा मनीआर्डर भेजने की प्रणाली में बहुत कुछ मिलता है। कल्पना कोजिए कि आपको कानपुर से १०० रुपये देघवृत्त के नाम लखनऊ भेजना है। यदि आप इन रुपयों को जिसे मैं बन्द करके लखनऊ भेजेंगे ता अधिक खर्च पड़ेगा। इससे आप इतना रुपया कानपुर के डाकखाने में कमीशन-सहित जमा करदेंगे । डाकखाने वाले लखनऊ के डाकबाने को लिख देंगे कि हमें रुपया मिलगया है; तुम यहां अपने नजाने से १०० रुपया देवदत्त को देदो। इससे क्या होगा कि कानपुर से लखनऊ रुपया भेजने की मेहनत बच जायगी और भेजनेवाले का ख़र्च कम होगी । • इसी तरह लखनऊ से जो मनीआर कानपुर देंगे उनका रुपया कानपुर के लज़ाने से देदिया ज्ञाया; लखनऊ से रुपया लद कर न अचेगा । अब कल्पना कीजिए कि सौ आदमी सी सौ रुपया कानपुर से दिकी भेजना चाहते हैं। उन्हों ने दस हजार रुपया कानपुर के डाकनवाने में जमा कर दिया, और साधही सैकड़ा पीछे एक रुपया कमीशन भी चुका दिया | पर बिंदकी एक छोटी जगह हैं । चहाँ के डाकन्नाने में दस हज़ार रुपया जमा नहीं रहता इस से वहां का पोस्ट-मास्टरफ़ तेहपुर के पोस्ट-मास्टर को लिखेगा कि दस हज़ार रुपया भेजदी। फ़तेहपुर रुपया भेज देगा और रास्ते में उसकी निगरानी और हिफाज़त के लिए पुलिस आदि को भी