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सम्पत्ति-शास्त्र ।

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हुज़ार रुपया किसी घिश्वासपात्र अदमी के साथ कलकतै भेजने में रेल का किराया इत्यादि मिलाकर २० रुपये प्रश्नच पड़ेगा, और इतने की हुंडी खरीदने में २१ रुपया देना पड़ेगा, तेा केाई हुंडी न खरीदेगा । अतएव मुंडी का भाव इतना नहीं चढ़ सकता कि वह रेल और डाक आदि द्वारा रुपये भेजने के लर्च से अधिक हो जाय ।।

अन्तर्धिनिमय के सम्बन्ध में जिन नियमों को ऊपर उल्टेख किया गया उन्हीं के अनुसार वर्किनिमय भी होता है। कानपुर और बम्बई के पारी जिस तरह अपने माल के मूल्य का विनिमथ मुंडो द्वारा करते हैं, कानपुर और लन्दन या कानपुर मगर पैरिस के व्यापारी भी उसी तरह करते हैं। देनेई तरह के मृत्य-विनिमये का मूल सून एकही है । बिदेश के लिए विलायसी या विदेशी ही लेनी होती है और अपने देश के लिए स्वदेशी । विदेश मूल्य-विनिमय में एक ६ति की विशेषता जरुर है । घह यह है कि विदेश में हिन्दुस्तानी सिधा नहीं चलती ! जितने देश हैं प्रायः सत्र के सि जुदा जुदा हैं और सब का मूल्य भी प्रायः जुदा जुदा है। इससे मूल्य-विनिमय फरने में, जैसा ऊपर एक जगह कहा जा चुका है, एक देश के सिक्के के स्थिर रखकर दूसरे देश के सिक्के का मूल्य उसके बराबर निश्चित करना पड़ता हैं। लंड के साथ व्यापार करने में हिन्दुस्तानी सिका, अर्थात् चाँदी का रुपया, स्थिर रक्त्रा जाता है। उसके बदले में कितने पेन्स आयेंगे, यह तत्कालीन विनिमय के निर्च के अनुसार निश्चित किया जाता है। गलंड और हिन्दुस्तान के दरमियान मूल्य-विनिमय का एक उदाहरण लीजिए । कल्पना कीजिए कि हिन्दुस्तान ने इंगलैंड के गेहूँ भेजा और गलद्ध ने हिन्दुस्तान के कपड़ा । कपड़े का जितना मूल्य हुआ गेहूँ का उससे अधिक मा। अर्थात् ईगलड पर हिन्दुस्तान का कुछ ण रहा। इससे जिन लोगों के इगलंड से हिन्दुस्तान मूल्य भेजना होगा उनमें परस्पर चढ़ा-ऊपरी होने लगेगी। फल यह होगा कि हिन्दुस्तान पर फी विलायता सुदी का भाव चढ़ जायगा । हिन्दुस्तान पर की गई १५०० रुपये मूल्य को मुंडी १०० पैड सैाने के सिक्के से कुछ अधिक मूल्य पर ईंगलंड में बिकेगी। परन्तु ३ गड से हिन्दुस्तान की सेने का सिक्का भेजने में जो ख़र्च पड़ेगा, उससे इस विलायती हुंडो का खर्च अधिक न हगि ! क्योंकि यदि अधिक