पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३२२

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गवर्नमेंट की व्यापार-व्यवसाय-चिपयक भौति । ३०३ की कोशिश की गई । इसमें यथेष्ट कामयाबी हुई । देसी कामयावी कि हिन्दुस्तानो माल का विलायत ज्ञाना हो वन्द हो गयी । हिन्दुस्तान की बनी हुई जा चोजें ग्रेप के जाती थीं इन पर इतना कर लगा दिया गया कि उनका जाना असंभव हो गया । विपरीत इसके विलायती चीज़ों पर नाममार्च के लिए कर लगा कर यहाँ उनकी आमदनी बढ़ाई गई । इँ गलैंड ने फ्या किया कि अपने कल-कारखाने की उन्नत करने के लिए हिन्दुस्तान में सिर्फ़ फचे बाने की उत्पत्ति कैा चढ़ाया । मतलब यह कि हिन्दुस्तान में कच्या माल तैयार कर ईंगलैंड जाय । वहां उससे अनेक प्रकार की चीजें तैयार हो और वही चोङ्गे' फिर इस देश की मानें । १८३७ ईसवी में इंगलड का राजासन महारानी विौरिया का मिला। तत्र तक चिलायत के व्यापारी अपना काम कर चुके थे ; हिन्दुस्तान के माल की आमदनी चे बन्द कर चुके थे। तथापि तव भी पहले बाली नीति' जैल को तेसो बन रहो । उस समय भी हिन्दुस्तान के बने हुए रेशमी रूमाल का थैाड़ा बहुत खप थेरप में था । यह भी ईगलचाल का असह्य हुआ । उन्होंने हिन्दुस्तान के रेशम कपड़ों पर भरो कर लगा दिया। पारलियर्मेट में इस बात की तहकीक़ात शुरू की कि ईंगळेंड के काराने में खर्च होने के लिए हिन्दुस्तान में कपास की खेती की उन्नति कैसे हो ! पर उसने इस बात की जाँच न कों कि हिन्दुस्तान के जुलाहे जिस प्रणाली से कप चुनते हैं उसको उन्नति किस तरह है। । १८५८ ईसवी में ईस्ट इंडिया कम्पनी को राजसत्ता की हिन्दुस्तान में समाप्ति हो गई। पर उसके बहुत पहले ही हिन्दुस्तान के जुलाई वेकार हो चुके थे; माल का तैयार हैराना बन्द है। चुका था ; हिन्दुस्तानिये की जीचन-रक्षा का एक मात्र सहारा खेती को व्यवसाय हो गया था। १८५८ ईसवी के बाद भी अँगरेज़-व्यापारियों का ध्यान हिन्दुस्तान से योरप जानेवाले मालपर वन्नर बनी रछ । हिन्दुस्तानी माल पर कर लगाने का कर्तब तब तक भी बराबर उन्हीं के हाथ में रहा । ईगलड में तैयार हुए माल पर जो महसूल लगता था उसे और काम करा के इन लोगों ने उसकी रफ्तनी हिन्दुस्तान को चढ़ा दी। फल यह हुआ कि विलायत फामाल, यह के माल के मुकाबले में, सस्ता बिकने लय । फिर भला हिन्दुस्तान की सनी दुई चीजें कोई क्यों ज़रीदता है इसके कुछ समय बाद बम्बई में कुछ मिले